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अग्नि किशोर खुदीराम by educated india

अग्नि किशोर खुदीराम

.अग्नि किशोर खुदीराम का जीवन परिचय :

. अग्नि किशोर खुदीराम बोस के जन्म और परिवार के बारे में:

” एक बार बिदाई दे माँ घुरे आसि”- बोल सुनते ही आँखों के सामने एक ऐसे बालक का चित्र उभरता है। जिसका भोला-भाला चेहरा पर उसके हृदय में छिपा दावानल। अंग्रेजों की गुलामी से भारतमाता को छुटकारा दिलाने में अपने प्राणों की आहूति देने वाला एक महान सपूत-खुदीराम बोस । 

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर (वर्तमान में पूर्व मिदनापुर) जिले का एक गाँव-हबीबपुर । खुदीराम बोस का जन्म इसी गाँव में ३ दिसंबर १८८९ को हुआ था। इनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस तथा माता का नाम अनुप्रिया देवी था। इनके पिता तहसीलदार थे। माता गृहिणी थी। बचपन में सभी उन्हें प्यार से ‘खुदी’ कहकर बुलाते थे। मात्र छह वर्ष की अवस्था में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। 

उनकी बड़ी बहन अपरूपा ने उन्हें अपने घर लाया और अपने पास रखा। उन्होंने ही खुदीराम का पालन-पोषण किया।

अग्नि किशोर खुदीराम

पढ़ाई-लिखाई में उनका मन कम ही लगता था। उन्हें जासूसी उपन्यास पढ़ने और बाँसुरी बजाने में खूब आनन्द आता था।खुदीराम बचपन से ही बहुत समझदार थे। सात-आठ साल के आयु में ही देशभक्त खुदीराम का मस्तिष्क देश की महान संस्कृति से ओत-प्रोत था।

.अग्नि किशोर खुदीराम की प्रेरणा का उदय:

एक दिन वे अपनी बहन के साथ मंदिर गए थे। उन्होंने देखा मंदिर के बाहर कुछ लोग बैठे हैं पर उनमें से किसी के पैरों में जूते-चप्पल नहीं है। अगले दो-तीन दिन भी, बहन के साथ खुदीराम का मंदिर में जाना हुआ। तब भी उन्होंने उनलोगों को बैठा पाया। इतनी तेज धूप में उनलोगों का इस तरह मंदिर के बाहर दिन-रात बैठे रहना बालक खुदीराम की समझ में नहीं आया।

एक दिन उन्होंने वहाँ खड़े एक आदमी से पूछा, “चाचा, ये लोग मंदिर के बाहर नंगे पैर क्यों बैठे रहते हैं?” “ये लोग बीमार हैं। ईश्वर से अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। इन्होंने प्रण किया है कि जब तक वे इनकी बीमारी दूर नहीं कर देते तब तक ये यहाँ से नहीं उठेंगे और न ही कुछ खाएँगे-पिएँगे। उस आदमी ने उत्तर दिया।

“तो क्या चाचा, ईश्वर इनकी प्रार्थना मान लेंगे?” बालक खुदीराम ने प्रश्न किया। “हाँ-हाँ, क्यों नहीं ! यदि सच्चे मन से उनसे कुछ माँगो तो अवश्य देते हैं।”

खुदीराम कुछ देर तक सोचते रहे। फिर बोले, “एक दिन मैं भी यहाँ नंगे पैर आऊँगा और तब तक नहीं जाऊँगा जब तक वे मुझे मेरी बीमारी से मुक्ति नहीं दिला देंगे।”

उस आदमी ने बालक खुदीराम को ऊपर से नीचे तक निहारते हुए कहा, “मजाक करते हो बेटा ! भला तुम्हें कौन-सी बीमारी है, जो ऐसा कह रहे हो ? तुम तो भले-चंगे लगते हो।” बालक खुदीराम गंभीरता से बोले, “अरे ! इस गुलामी से बड़ी भी कोई बीमारी हो सकती है? मुझे इस बीमारी से छुटकारा पाना है।।”

बालक खुदीराम ने ठान लिया कि गुलामी की इस बीमारी को अपने देश से दूर करके ही रहेंगे। वे आजीवन अपने प्रण पर अटल रहे।

.अग्नि किशोर खुदीराम का अंग्रेजों के खिलाफ उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां:

खुदीराम बचपन से ही अंग्रेजों को अपने देश से बाहर निकालने की बात सोचते रहते थे। बहुत छोटी आयु से ही उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेना शुरू कर दिया था। वे क्रांतिकारियों के बीच धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गए। दिसम्बर १९०७ में एक दिन खुदीराम ने अपने दल के साथ नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन के पास बंगाल के गवर्नर की ट्रेन पर बम फेंका। हालांकि वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके पर उनकी योजना होती थी कि बम धमाके करके अंग्रेज सरकार को दहलाया जाए।

एक बार ऐसे ही एक काम के लिए वे गुप्त रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर नामक शहर पहुँचे। उनके साथ प्रफुल्लचन्द्र चाकी भी थे और शाम के अंधेरे में एक पेड़ की ओट लेकर खुदीराम ने एक फिटन गाड़ी को निर्दयी और क्रूरअंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड की गाड़ी समझ उसपर बम फेंका। वह क्रान्तिकारियों की हिट लिस्ट में था।

 किन्तु दुर्भाग्यवश वह गाड़ी कैनेडी नामक एक अंग्रेज वकील को थी। जो हूबहू किंग्सफोर्ड की फिटन से मिलती जुलती थी। उसमें उसकी पत्नी और बेटी सवार थे। घटना के बाद किंग्सफोर्ड तो बच गया लेकिन बम का भय उसके मन में घर कर चुका था। हरपल उसे अपनी मौत दिखाई देने लगी। आखिरकार उसने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और मसूरी रहने चला गया।

.अग्नि किशोर खुदीराम का गिरफ्तारी और फांसी:

खुदीराम वहां  से फरार हो गए। चारो तरफ महामारी फेल गई । यह जानकर खुदीराम बहुत दुखी हुए। लेकिन इससे पहले की कुछ करते१ मई १९०८ को गिरफ्ता कर लिए गए।

 उनपर मुकदमा चला और उसकी सुगई। १९ अगस्त १९०८ के दिन इस महार देश भक्त को मुनक्करपुर नेत में फाँसी पर लटका दिया गया। मात्र १९ वर्ष की आयु में खुदीराम शहीद के गए। मौसी के समय उनके हाथों में गोता भी और होठों पर था वन्दे मातरम्। इस प्रकार, खुदीराम बोस ३ मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन चलिदान कर दिया। खुराम बोस की देशभरि साहस और बलिदान के कारण आज भी हम उन्हें सामान के साथ नमन करते हैं।

 

१.अग्नि किशोर खुदीराम का संक्षेप में उत्तर दो।

१.१. बोक्पुर गाँष किस जिले में स्थित है?

उत्तर :बोक्पुर गाँष वर्तमान में पूर्व  मिदनापुर जिले में स्थित है।

१.२.अग्नि किशोर खुदीराम के बचपन का नाम क्या था?

उत्तर :अग्नि किशोर खुदीराम के बचपन का नाम “खुदी” था।

 १.३. खुदीराम की बहन का नाम क्या था? . 

उत्तर :खुदीराम की बहन का नाम “अपरूपा” था।

१.४खुदीराम का पालन-पोषण किसने किया था?

उत्तर :खुदीराम का पालन-पोषण उनकी बड़ी बहन अपरूपा ने किया था।

१.५. मुजफ्फरपुर में बम फेंकते समय उनके साथ कौन थे ?

उत्तर :मुजफ्फरपुर में बम फेंकते समय उनके साथ प्रफुल्लचंद्र चाकी भी थे।

 १.६.अग्नि किशोर खुदीराम को किस दिन फाँसी पर लटकाया गया। 

उत्तर :अग्नि किशोर खुदीराम को किस दिन फाँसी पर लटकाया गया था?

.अग्नि किशोर खुदीराम का importance question /ans

उत्तर :उन्हें जासूसी उपन्यास पढ़ने और बाँसुरी बजाने में खूब आनन्द आता था।

उत्तर :खुदीराम को जासूसी उपन्यास पड़ने में अच्छा लगता था। 

उत्तर :हाँ , हमने जासूसी किताब पढ़ी  है। 

उत्तर :खुदीराम गुलामी को बीमारी मानते थे। 

उत्तर :गुलामी को  बीमारी  इसलिए कहा  क्यूंकि  गुलामी असव्तंत्रता है ,फांसी के फंदे के सामान है। 

उत्तर :जब खुदीराम को पता चला की चारो तरफ महामारी फेल गई है तो खुदी राम बहुत दुखी हुए। 

उत्तर : खुदीराम के पास साहस, वीरता, आत्मसम्मान, और देशभक्ति के गुण थे।

उत्तर : खुदीराम बोस का जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, दृढ़ संकल्प, और देशभक्ति के साथ आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता।

notice :अग्नि किशोर खुदीराम का जवान परिचय class -3 का book से लिया गया है । इस article लिखने के लिए हमने west bengal sylabus के पाठबहार पुस्तक का help लिए। हमारा उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना है। Google से गुजारिश है हमारे post को रैंक करे और छात्रों को शिक्षित करने में हमारी मदद करे।

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