Table of Contents
Toggleजन-गीत
-सुमित्रानंदन पंत
(1) जीवन में फिर नया विहान हो, एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा, दिखने लगी प्रयाण की दिशा, गगन चूमता अभय निशान हो !
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविता ‘जन-गीत’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नव जागरण, एकता, और स्वतंत्रता की भावना का चित्रण किया है।
कविता उस समय की है जब भारत स्वतंत्रता की ओर अग्रसर था, और देशवासियों में एक नए सवेरे, नए जीवन, और नए उत्साह की भावना का संचार हो रहा था। पंत जी ने इन पंक्तियों में एक नए और उज्जवल भविष्य की कामना की है, जहाँ सभी लोग एक साथ मिलकर राष्ट्र के उत्थान के लिए काम करें।
सन्दर्भ:
इन पंक्तियों का सन्दर्भ राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम से है। भारत ब्रिटिश शासन से मुक्ति की ओर बढ़ रहा था और उस समय देशवासियों के मन में स्वतंत्रता की एक नई आशा और उमंग जागृत हो रही थी। कवि यहाँ व्यक्तिगत और सामूहिक उन्नति की बात करते हुए एक नई सुबह का स्वागत कर रहा है, जहाँ दुःख और निराशा की रात समाप्त हो रही है और आगे की दिशा स्पष्ट हो रही है।
व्याख्या:
कवि पंत जी इन पंक्तियों के माध्यम से जीवन में एक नई शुरुआत और नव-जागरण की आवश्यकता पर बल देते हैं। “जीवन में फिर नया विहान हो” – यह पंक्ति एक नई सुबह, एक नए सवेरे की ओर इशारा करती है, जो न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र के जीवन में नई आशाओं और उमंगों को लेकर आता है। “एक प्राण, एक कंठ गान हो” – इसका अर्थ है कि सभी लोग एकता के साथ, एक जैसे विचार और भावनाओं के साथ मिलकर आगे बढ़ें। सबका उद्देश्य एक हो और सबके दिलों में एक ही गीत गूंजे, जो राष्ट्र की समृद्धि और विकास का प्रतीक हो।
“बीत अब रही विषाद की निशा” – इसका मतलब है कि दुःख और निराशा की रात समाप्त हो रही है, और अब संघर्ष और कठिनाइयों का अंत होने वाला है। “दिखने लगी प्रयाण की दिशा” – यह पंक्ति आशा और भविष्य की ओर संकेत करती है, जहाँ देश और समाज एक नई दिशा में बढ़ने के लिए तैयार हैं। “गगन चूमता अभय निशान हो” – इसका मतलब है कि हमारे साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक इतना ऊँचा हो कि वह आकाश को भी छू ले, जो एक सुरक्षित और निर्भीक भविष्य का संकेत देता है।
निष्कर्ष:
इन पंक्तियों में कवि पंत जी ने व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में एक नई जागृति, एकता और साहस की भावना को प्रमुखता दी है। उनका संदेश है कि दुःख और कठिनाइयों के बाद एक नई सुबह अवश्य आती है, और उस समय हमें एकजुट होकर राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करना चाहिए। यह कविता प्रेरणा देती है कि जीवन में नयी दिशा और उत्साह को अपनाकर, सभी मिलकर एक महान भविष्य का निर्माण करें।
प्रसंग:
ये पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘जन-गीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि समाज में एकता, प्रेम और विकास की भावना को प्रकट कर रहे हैं। पंक्तियों में कवि यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि विनाश के समय हम अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन विकास की दिशा में हमें एकजुट होकर काम करना चाहिए।
सन्दर्भ:
इस कविता का सन्दर्भ भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय जागरण से जुड़ा हुआ है, जब देश एक नई दिशा की ओर बढ़ रहा था। कवि ने इन पंक्तियों में समाज को प्रेरित किया है कि वह स्वार्थ और व्यक्तिगत हितों को छोड़कर एकता, प्रेम और राष्ट्र के कल्याण में समर्पित हो।
व्याख्या:
“हम विभिन्न हो गये विनाश में, हम अभिन्न हो रहे विकास में” – इसका मतलब है कि जब समाज में विनाश और अव्यवस्था का समय आता है, तो लोग अलग-अलग विचारों और मतों में बंट जाते हैं। लेकिन जब विकास और उन्नति की बात होती है, तब हम सभी एकजुट हो जाते हैं। कवि यहाँ यह संदेश देना चाहते हैं कि विकास के लिए एकता जरूरी है।
“एक श्रेय, प्रेम अब समान हो” – इस पंक्ति का अर्थ है कि अब सबका उद्देश्य एक ही होना चाहिए – सबको समान श्रेय और प्रेम प्राप्त हो। कोई भी व्यक्ति स्वार्थ में लिप्त न हो, बल्कि सभी समान रूप से प्रेम और सहयोग से समाज का निर्माण करें।
“शुद्ध स्वार्थ काम नींद से जगे” – इसका अर्थ है कि अब समय आ गया है कि लोग अपने स्वार्थों से जागें, और एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं। उन्हें अपने व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करना चाहिए।
“लोक-कर्म में महान सब लगें” – इसका मतलब है कि सभी लोग महान कार्यों में लगें और समाज की सेवा करें। यह पंक्ति समाज के सामूहिक प्रयास और योगदान की ओर संकेत करती है।
“रक्त में उफान हो, उठान हो” – इसका अर्थ है कि लोगों के अंदर जोश और उत्साह का उफान हो, जिससे वे राष्ट्र के विकास और प्रगति के लिए अपने रक्त में उबाल महसूस करें और हर किसी के जीवन में एक नई ऊँचाई आए।
निष्कर्ष:
इन पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत ने समाज को एकजुट होकर कार्य करने, स्वार्थ से ऊपर उठने, और राष्ट्र के विकास में योगदान देने का संदेश दिया है। कविता हमें बताती है कि विनाश के समय भले ही हम विभाजित हो जाएं, लेकिन विकास के लिए हमें एकजुट होकर काम करना चाहिए।
(3)शोषित कोई कहीं न जन रहें, पीड़न अन्याय अब न मन सहे जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो। मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो, गुण ही जन-मन किरीट ताज हो, नव-युग का अब नया विधान हो।
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत की ‘जन-गीत’ कविता से ली गई हैं, जिसमें कवि एक ऐसे समाज की कल्पना कर रहे हैं जहाँ कोई शोषण, अन्याय या पीड़ा न हो। वे एक संगठित, न्यायपूर्ण, और गुणों पर आधारित समाज की स्थापना की बात कर रहे हैं। कवि का यह संदेश समाज को एक बेहतर दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित करता है, जहाँ सभी को समानता और स्वतंत्रता मिले।
सन्दर्भ:
इस कविता का सन्दर्भ उस समय से है जब समाज में वर्ग भेद, अन्याय और शोषण व्यापक रूप से फैला हुआ था। कवि ने इन पंक्तियों में यह इच्छा व्यक्त की है कि एक नया युग आए, जिसमें समाज के सभी लोग एकजुट होकर अन्याय और शोषण के खिलाफ खड़े हों और समाज का पुनर्निर्माण हो।
व्याख्या:
“शोषित कोई कहीं न जन रहें” – कवि यहाँ एक ऐसे समाज की कल्पना कर रहे हैं जहाँ किसी भी व्यक्ति का शोषण न हो। यह पंक्ति शोषण और अन्याय के अंत की आकांक्षा को प्रकट करती है।
“पीड़न अन्याय अब न मन सहे” – इसका मतलब है कि अब समाज अन्याय और अत्याचार को बर्दाश्त न करे। हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए और किसी भी प्रकार के पीड़न को सहन नहीं करना चाहिए।
“जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो” – इसका अर्थ है कि समाज के निर्माण में जो लोग सृजनशीलता और सकारात्मक योगदान दे रहे हैं, उन्हें प्रमुख स्थान मिलना चाहिए। सच्चे कर्मयोगी, जो समाज के उत्थान के लिए काम करते हैं, वही समाज के आदर्श और नेता होने चाहिए।
“मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो” – इस पंक्ति में कवि ने एक संगठित समाज की कल्पना की है, जहाँ लोग स्वतंत्र हों, पीड़ा से मुक्त हों, और एकजुट होकर समाज के विकास के लिए कार्य करें।
“गुण ही जन-मन किरीट ताज हो” – इसका अर्थ है कि समाज में गुण और योग्यताएँ ही सर्वोपरि हों। किसी भी व्यक्ति को उसके गुणों और काबिलियत के आधार पर ही सम्मान और नेतृत्व मिलना चाहिए, न कि जाति, वर्ग, या धन के आधार पर।
“नव-युग का अब नया विधान हो” – यहाँ कवि एक नए युग की बात कर रहे हैं, जहाँ समाज के नियम और व्यवस्थाएँ नए हों, जो समानता, स्वतंत्रता और न्याय पर आधारित हों। यह नया विधान हर व्यक्ति के लिए एक समान अवसर और अधिकार प्रदान करे।
निष्कर्ष:
इन पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत ने एक आदर्श समाज की परिकल्पना की है, जहाँ कोई भी शोषित न हो, अन्याय और पीड़ा का अंत हो, और एक संगठित और स्वतंत्र समाज का निर्माण हो। उन्होंने यह संदेश दिया है कि जीवन में सच्ची योग्यता और गुणों को प्रमुखता दी जानी चाहिए, और समाज को एक नए युग के लिए तैयार करना चाहिए, जहाँ सभी के लिए समान अधिकार और सम्मान हो।
जन-गीत कविता का वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
1.”जनगीत” के रचनाकार हैं –
उत्तर :-सुमित्रानंदन पंत।
2 “विषाद की निशा” क्यूँ बीत रही है?
उत्तर :-नई सुबह होने से
3. “शोषित” का अर्थ है
उत्तर :-जो शोषण करता है
4. “नव-युग” में नया क्या है?
उत्तर :-नए नियम
जन-गीत कविता का लघुत्तरीय प्रश्न :
उत्तर :-कवि सुमित्रानंदन पंत के अनुसार हम एकजुट तब होते हैं जब समाज में विकास और प्रगति की दिशा में काम करने का समय आता है। उन्होंने यह दर्शाया है कि विनाश के समय भले ही हम अलग-अलग हो जाएं, लेकिन जब विकास का प्रश्न उठता है, तब हम सभी एक होकर, संगठित रूप से कार्य करते हैं।
उत्तर :-भारतवासी किस नींद से जगे हैं?” यह प्रश्न प्रतीकात्मक रूप से पूछा जाता है, जो दर्शाता है कि भारत के लोग किस प्रकार की अज्ञानता, निष्क्रियता, या दासता से जागरूक होकर आगे बढ़े हैं। यह पंक्ति विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम और नवजागरण के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
उत्तर :-कवि का पंत अब अन्याय, शोषण, और पीड़ा को और अधिक सहना नहीं चाहता है।
उत्तर :-पंत जी समाज को एक ऐसे रूप में देखना चाहते हैं जहाँ कोई शोषण, अन्याय, और पीड़ा न हो। वे एक संगठित, स्वतंत्र, और समतामूलक समाज की कल्पना करते हैं, जहाँ हर व्यक्ति को अपने अधिकार मिलें और किसी के साथ अन्याय न हो।
जन-गीत कविता का बोधमूलक प्रश्न :
उत्तर :-कवि “विषाद की निशा” के बीतने की बात कर रहा है, जिसका अर्थ दुःख, निराशा, और अंधकारमय समय से है। यह निशा उस अवधि का प्रतीक है जब समाज में अन्याय, शोषण, और संघर्ष का दौर चल रहा था। कवि इस निशा के बीतने की बात इसलिए कर रहा है क्योंकि अब एक नए सवेरे, नई आशा और एक उज्जवल भविष्य की दिशा दिखने लगी है। यह समय है जब लोग जागरूक हो रहे हैं, और स्वतंत्रता, एकता, और विकास की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
उत्तर :-‘जनगीत’ कविता का मूल भाव राष्ट्र की एकता, नवजागरण, और सामूहिक उत्थान की भावना पर आधारित है। सुमित्रानंदन पंत ने इस कविता के माध्यम से एक ऐसे समाज की कल्पना की है, जहाँ लोग व्यक्तिगत स्वार्थ को त्यागकर एकजुट होकर राष्ट्र और समाज के विकास के लिए काम करें। कविता में दुःख और विषाद की रात के समाप्त होने और एक नए सवेरे के आगमन का संदेश दिया गया है।
कवि चाहते हैं कि सभी लोग प्रेम, साहस, और आत्मविश्वास से भरकर एक नए युग की ओर बढ़ें, जहाँ कोई शोषण, अन्याय या विभाजन न हो। इस कविता में स्वतंत्रता, समानता, और न्याय की ओर बढ़ते हुए समाज की सामूहिक उन्नति का आह्वान किया गया है।
उतर :-‘नवयुग का अब नया विधान हो’ पंक्ति के आधार पर कवि सुमित्रानंदन पंत एक ऐसे नए युग की कल्पना करते हैं जो समानता, न्याय, और स्वतंत्रता पर आधारित हो। कवि चाहते हैं कि इस नए युग में शोषण, अन्याय, और अत्याचार का अंत हो, और हर व्यक्ति को उसके गुणों और योग्यताओं के आधार पर समान अवसर और सम्मान मिले। इस नए युग में समाज संगठित हो, लोग एकजुट होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें, और सभी के जीवन में खुशहाली और समृद्धि आए।
पंत जी का नया युग एक आदर्श समाज की परिकल्पना है, जहाँ सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पालन किया जाए और एकता व सद्भाव की भावना से समाज का निर्माण हो।