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Toggleजीवन की निरन्तरता
.जीवन की निरन्तरता पाठ का (MCQ)
1 . पुत्री कोशिकाओं के लिए मातृ कोशिका का विभाजन कहलाता है-
उतर :-कोशिका विभाजन
2 . त्रिका कोशिशका में विभाजन
उत्तर :-नहीं होता है
3 .केन्द्रक का विभाजन कहलाता है-
उत्तर :-समसूत्रण
4 .हमारे जीवन का भौतिक आधार है-
उत्तर :-जीवद्रव्य
5. कोशिका का मस्तिष्क है-
उत्तर :-सेंट्रोसोम
6. मनुष्य में गुण सूत्रों की संख्या है-
उत्तर :-46
7. समसूत्रण है-
उत्तर :- केन्द्रक विभाजन
8. अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के फलस्वरूप पुत्री कोशिकायें बनती हैं-
उत्तर :-4
9. कोशिका विभाजन की सबसे लम्बी अवस्था है-
उत्तर :-पश्चावस्था
10 . किस पौधे में कभी-कभी नर युग्मक स्वयं ही भ्रूण के रूप में विकसित हो जाता है-
उत्तर :-मंटर में
11. भू-प्रसारिका (offset) प्रकार का वर्धी प्रजनन मिलता है-
उत्तर :-जलकुम्भी में
12. मूंगफली का परागण होता है-
उत्तर :-स्व -परागण
13. मक्के में परागण होता है-
उत्तर :- हवा द्वारा
14. अलैंगिक प्रजनन की विधि है-
उतर :-(a) विखण्ड
(b) मुकुलन –
(c) बीजाणु जनन
(d) इनमें से सभी
15.निषेचन की क्रिया मुख्यतः होती है
उत्तर :- पुष्पी पादप तथा जन्तुओं में
16. नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संयोजन से बनता है-
उत्तर :- युग्मज
17. निषेचित अण्डाशय से बनता है-
उत्तर :-फल
18. स्त्री केसर के आधारीय भाग को कहा गया है –
उत्तर :-गर्भाशय
19 .पुंकेसर का अग्रभाग है –
उत्तर :-पारागकोष
20 .मानव की सबसे संवेदनशील अवस्था है :-
उत्तर :-बाल्यावस्था
.जीवन की निरन्तरता पाठ का रिक्त स्थानों की पूर्ति करो
1 .हमारे शरीर में ऑटोसोम्स की संख्या 23 है।
2 .तर्क तन्तु का निर्माण क्रियाशील एवं निर्विकल्पक अध्यात्मी प्रक्रियाओं में होता है।
3 .नाभिकीय विभाजन की मिटोसिस और मेयोसिस अवस्थायें होती हैं।
4 .गुणसूत्रों के विनिमय की क्रिया रीकॉम्बिनेशन में होती है।
5 .सेण्ट्रोसोम गुणसूत्रों में भाग लेता है।
6. प्रजनन द्वारा जीव अपनी जातियों का निर्माण करते हैं।
7. मलेरिया परजीवी में सामान्यता अनुक्रमणिका द्वारा प्रजनन होता है।
8. बीजाणु का निर्माण कोशिकाओं में होता है।
9. शुक्राणु एवं अण्डाणु के संगलन को सिंगेटिजेशन कहा जाता है।
10. किशोरावस्था में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास हार्मोनों के कारण होता है।
11. जीवन चक्र है प्रारंभिक विकास तथा परिपक्वता।
12. कोशिका चक्र की विभाजन अवस्था में DNA का संश्लेषण होता है।
13. परिपक्व अण्डाशय गर्भाशय में बनाता है तथा परिपक्व ओवरी से बीज बनता है।
14. सेमल से पर-परागण होता है अणुक्रमणिका द्वारा।
15. मकरन्द का स्राव न्यूरॉन्स द्वारा होता है।
.जीवन की निरन्तरता पाठ का लघुत्तरीय प्रशन :-
1. गुणसूत्र का शाब्दिक अर्थ बताओ।
उत्तर :-गुणसूत्र का शाब्दिक अर्थ है – वह नियम या नियमावली जो किसी विशिष्ट विषय के लिए लागू होती है।
2. किस विधि द्वारा कोशिकायें विभाजित होती हैं?
उत्तर :-कोशिकाएँ अधिकांशतः मितोचोंद्रियों द्वारा विभाजित होती हैं।
3 .जब कोई एक कोशिका दो समान पुत्री कोशिकाओं में विभाजित होती हैं तो क्या वह समसुत्रण के कारण होती है?
उत्तर :-हाँ ,समसुत्रण के कारण ही एक कोशिका दो समान पुत्री कोशिकाओं में विभाजित होती हैं।
4. जीन कहाँ स्थित होता है?
उत्तर :-जीन नास्तिक अवस्था में स्थित होता है।
5. कोशिका विभाजन की परिभाषा लिखो।
उत्तर:-जब कोशिका अपने आप को दो या अधिक भागों में विभाजित करती है। तो उसे कोशिका विभाजन कहते है।
6. प्रोकैरियोटिक कोशिका की परिभाषा लिखो।
उत्तर :-प्रोकैरियोटिक कोशिका एक सरल एककोशीय कोशिका है जो बिना नाभिक कोशिका या बैक्टीरिया कहलाती है।
7. अमीबा में किस प्रकार का प्रजनन होता है?
उत्तर :-अमीबा में भिन्नता संयुक्त पुदाओं के माध्यम से प्रजनन प्रक्रिया होता है ।
8. स्पोर कहने से तुम क्या समझते हो ?इसका निर्माण कहाँ होता है?
उत्तर :-स्पोर एक सुरक्षित और विशेष शैली की पुत्री अवस्था है जो बैक्टीरिया या फंगस के जीवन का एक विकास अवधि होती है। इसका निर्माण यहाँ होता है कि जहाँ किसी शरीरिक परिवर्तन या यातायात की जरूरत होती है।
9. वर्धी प्रजनन की परिभाषा लिखो।
उत्तर :-जब नए कोशिकाओं का निर्माण माता कोशिका के बिना होता है।वर्धी प्रजनन कहते है।
.जीवन की निरन्तरता पाठ का दीर्घ उत्तरीय प्रशन :
(2.a)कोशिका विभाजन और कोशिका चक्र (Cell division and Cell cycle)
उत्तर :-सजीवों का शरीर एक या अधिक कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। जिस प्रकार किसी भवन के निर्माण में ईंटों का प्रयोग होता है, जो भवन की इकाई होती हैं, ठीक उसी प्रकार से कोशिका भी जीवन की इकाई (unit of life) है। चूंकि सजीवों का पूरा शरीर कोशिकाओं का बना होता है अतः कोशिकाओं को रचनात्मक इकाइयाँ (primary units) कहते है
उत्तर :-प्रत्येक कोशिका के भीतर जीवन संबंधी क्रियायें; जैसे रक्त परिवहन, श्वसन आदि होता रहता है। फलस्वरूप कोशिकायें क्रियात्मक इकाइयाँ हैं। अतः “कोशिका को जीवन की रचनाशील एवं क्रियाशील इकाई कहते हैं।” (Cell is the underlying and practical unit of life.)
उत्तर :- कोशिकाओं को केन्द्रकीय रचनानुसार प्रोकैरियोटिक, मिजोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक में विभक्त किया जा सकता है।
(1) प्रोकैरियोटिक कोशिका : वे कोशिकायें जो केन्द्रकीय झिल्ली, केन्द्रक द्रव्य व गुणसूत्र विहीन होती हैं प्रोकैरियोटिक कोशिकायें कहलाती हैं; जैसे जीवाणु, माइकोप्लाज्मा, हरी-नीली शैवाल इत्यादि।
(ii) मिजोकैरियोटिक: कोशिका केन्द्रक युक्त कोशिकायें जिनके गुणसूत्र अम्लीय प्रोटीनयुक्त होते हैं तथा जिनके केन्द्रक को दो भागों में बाँटा जा सकता है, उन्हें मिजोकैरियोटिक कोशिकायें कहते हैं; जैसे पेरिडिनियम, नक्टिलिउका आदि। –
(III) यूकैरियोटिक कोशिका: पूर्ण विकसित कोशिका को यूकैरियोटिक कोशिका कहते हैं। ऐसी कोशिकाओं के वि केन्द्रक के उपादान (केन्द्रक झिल्ली, केन्द्रिका, केन्द्रक द्रव्य तथा केन्द्रक जाल) उपस्थित रहते हैं तथा कोशिका द्रव्य में कोशिकांग भी विद्यमान रहते हैं। इन कोशिकाओं के गुणसूत्र क्षारीय प्रोटीन युक्त होते हैं
उत्तर: प्रोकैरियोटिक कोशिका
(1) प्रोकैरियोटिक कोशिका में केन्द्रीय झिल्ली की अनुपस्थिति के कारण सत्य केन्द्रक नहीं पाया जाता है
(2) प्रोकैरियोटिक में केन्द्रिका अनुपस्थित होती है।
(3) गॉल्गीकाय, अन्तः प्रद्रव्यी पदार्थ व माइटोकॉण्ड्रिया प्रोकैरियोटिक में अनुपस्थित होते हैं।
(4) कोशिका भित्ति, प्रोकैरियोटिक की सेलुलोज रहित होती है।
(5) हरित लवक की अनुपस्थिति प्रोकैरियोटिक में होती है।
(6) प्रोकैरियोटिक कोशिका में एक गुणसूत्र होता है।
यूकैरियोटिक कोशिका
1. यूकैरियोटिक कोशिका में झिल्ली सहित सत्य केन्द्रक पाया जाता है।
2. यूकैरियोटिक कोशिका में केन्द्रिका उपस्थित होती है।
3. यूकेरियोट्स में गॉल्जीक बॉडी, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम और प्रोकैरियोटिक मौजूद होते हैं।
4. यूकैरियोटिक की कोशिका भित्ति सेलुलोज युक्त होती है।
5. हरित लवक यूकैरियोटिक कोशिकाओं में उपस्थिति होती है।
6. यूकैरियोटिक कोशिका में अनेक गुणसूत्र होते हैं।
उत्तर :-कोशिका का मस्तिष्क केन्द्रक कहलाता है तथा केन्द्रक निम्न रचनाओं से निर्मित होता है- (a) केन्द्रकीय झिल्ली (atomic film), (b) केन्द्रक द्रव्य (nucleo plasm), (c) केन्द्रिका (nucleolus) तथा (d) गुणसूत्र (chromosomes) केन्द्रकीय झिल्ली
(a) केन्द्रकीय झिल्ली (Atomic membrance)- केन्द्र को घेरे रहने वाली झिल्ली केन्द्रकीय झिल्ली कहलाती है।
(b) केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm)- केन्द्रकीय झिल्ली गुहिका से घिरे हुए गह्वर में प्रोटिनित तरल भरा रहता है जिसे केन्द्रक द्रव्य कहते हैं।
(c) केन्द्रिका (Nucleolus)- केन्द्रक द्रव्य में एक या अधिक गोलाकार आकृतियाँ पायी जाती हैं जिन्हें केन्द्रक कहते हैं। इनमें राइबोसोम का संश्लेषण होता है जिसके कारण केन्द्रिका में राइबोसोम घने रूप से भरे होते हैं।
(d) गुणसूत्र (Chromosome)- इसके केन्द्रक द्रव्य(nucleoplasm) में एक विशेष पदार्थ न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein) रहता है जिसे क्रोमैटिन (chromatin) कहते हैं।
कोशिका की विश्राम अवस्था में यह दानेदार (granular) रूप में के विसरित (diffused) रहता है तथा कोशिका विभाजन (cell division) के दौरान यह लम्बे सूत्रों का रूप धारण कर लेता है। इन सूत्रों को उपयुक्त रंगों में रंगने पर ये । खूब गहरे रंग जाते हैं। इसलिएइन्हें क्रोमोसोम या गुणसूत्र कहते हैं।
उत्तर :-कोशिका की विश्राम अवस्था में यह दानेदार (granular) रूप में के विसरित (diffused) रहता है तथा कोशिका विभाजन (cell division) के दौरान यह लम्बे सूत्रों का रूप धारण कर लेता है। इन सूत्रों को उपयुक्त रंगों में रंगने पर ये । खूब गहरे रंग जाते हैं। इसलिएइन्हें क्रोमोसोम या गुणसूत्र कहते हैं।
गुणसूत्र का पता सबसे पहले स्ट्रास बर्गर ने 1875 ई० में लगाया तथा 1918 ई० में वाल्डेयर (Waldeyer) ने इसे क्रोमोसोम का नाम दिया। एक जाति के जीवों की कोशिकाओं के केन्द्रकों में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है तथा ये हमेशा जोड़े में रहते हैं।
गुणसूत्र की संख्या (Chromosome number)- शरीर में शारीरिक कोशिकायें (substantial cells or body cells) और जनन कोशिकायें (microorganism cells) ये दो प्रकार की कोशिकाएं मिलती हैं। शारीरिक कोशिकाओं में गुणसूत्र हमेशा जोड़े में रहते हैं। और इसे ‘2n’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं तथा द्विगुणित (diploid) की संज्ञा देते हैं;
दूसरी ओर जनन कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या, शारीरिक कोशिकाओं से आधी होने के कारण अगुणित (haploid) कहलाती हैं तथा इसे ‘n’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं। जोड़े के प्रत्येक गुणसूत्र हर दृष्टिकोण से सदृश होने के कारण समजात (homologous) कहलाते हैं। उदाहरण – हमारे शरीर की शारीरिक कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या =44 एंव 2n =44 होता है।
उत्तर :-गुणसूत्र के प्रकार (Kinds of chromosomes)- लिंग अथवा लक्षणों के आधार पर गुणसूत्र दो प्रकार के होते है-(a) आटोसोम (Autosomes) तथा (b) लैंगिक गुणसूत्र (Sex chromosomes)
(a) आटोसोम (Autosome) – वे क्रोमोजम जिन पर शारीरिक गठन में भाग लेने वाले जौन उपस्थित रहते हैं आटोसोम कहते हैं। मनुष्य में 23 जोड़ी क्रोमोजोम में 22 जोड़ी क्रोमोजोम अटोसोम होते हैं। वे लिंग निर्धारण में भाग नहीं लेते केवल शारीरिक गठन में भाग लेते हैं।
(B) लैंगिक गुणसूत्र (Sex chromosome)- वे क्रोमोजम जिन पर लिंग निर्धारण करने वाले जीन्स उपस्थित रहते है उन्हें लैंगिक गुणसूत्र (sex chro-mosome) या एलोसम (Allosome) कहते हैं, जैसे मनुष्य में 23 जोड़ी क्रोमोजोम में 1 जोड़ी क्रोमोजोम लिग निर्धारण में भाग लेता है। अतः इसे लैंगिक गुणसूत्र कहते हैं। मानव में ये दो प्रकार के होते हैं-x-गुणसूत्र तथा Y गुणसूत्र। ४ गुणसूत्र लम्बा तथा छड़ के आकार का होता है परन ४ गुणसूत्र छोटे आकार का होता है। पुरुष में दो प्रकार के गुणसूत्र मिलते हैं लेकिन त्री में एक जोड़े × गुणसूत्र ही होते हैं।
उत्तर :-जीन (Quality)- क्रोमोजोम पर उपस्थित वे विशिष्ट कण जो आनुवांशिक लक्षणों के वाहक होते हैं उन्हें जीन कहते ये DNA द्वारा गठित होते हैं। प्रत्येक आनुवंशिक लक्षण का नियंत्रण एक जोड़ा जौन करता है जो अलग-अलग समजात गुणसू पर स्थित होते हैं। जीन को आनुवंशिकता की इकाई माना जाता है।
उत्तर :-गुणसूत्र की बनावट (Construction of Chromosome)- दो क्रोमोनिमाटा गुणसूक्क बिन्दु पर जुटकर जिस धागे सदृश रचना को विकसित करते हैं, गुणसूत्र कहते हैं।
प्रत्येक गुणसूत्र में हिस्टोन (histone) नामक प्रोटीन तथा DNA एवं RNA मिलते है (DNA-Deoxyribo Nucleic Corrosive) (RNA-Ribo Nucleic Corrosive)
DNA के कई धागे आपस में लिपटकर प्रत्येक कोमोनिमाटा में एक अक्ष (pivot) बनाते हैं, जो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर फूलकर दाने जैसी दो मोटी रचनायें बनाना है जिन्हें कोमोमियर्स (chromomeres) कहते हैं। इनके जोड़ों के अक्ष के दोनों ओर DNA धागे लूप की तरह निकले होते हैं जिनपर RNA तथा प्रोटीन से बनी मैट्रिक्स होती हैं। मुष्णसूरों पर जीन्स होती हैं जो लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाती हैं। एक गुणसूत्र पर DNA के अणुओं की संख्या 10,000 से 20,000 तक होती है।
उत्तर :-DNA की आणविक संरचना ज्ञात करने का श्रेय James D. Watson नामक अमरीकी तथा F.H.C. Cramp नामक अंग्रेज वैज्ञानिकों को जाता है, जिसके लिए सन् 1962 में इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनके अनुसार DNA न्यूक्लिअलोटाइड्स के बने होते हैं जिनमें शर्करा (sugar), फॉस्फेट्स तथा नाइट्रोजन आधार होता है।
शर्करा डी ऑक्सी राइबोज प्रकार की होती है तथा नाइट्रोजन आधार-एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसिन तथा थाइमीन-चार प्रकार के होते हैं। थाइमीन तथा साइटोसीन पिरीमिडीन (pyrimidine) एवं एडिनीन व ग्वानीन प्यूरीन (purine) के नाम से जाने जाते हैं।
DNA के कार्य (Capability of DNA) – (1) DNA आनुवंशिक लक्षणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाते हैं। (2) इनका समस्त जैविक क्रियाओं पर नियंत्रण होता है। (3) इनके द्वारा RNA का संश्लेषण होता है। (4) विकर (Chemical) के निर्माण को नियंत्रित करता है जो जीवन की समस्त क्रियाओं का नियमन करते हैं। (5) DNA के द्वारा क्रोमेटिन जाल के अधिकांश भाग का निर्माण होता है। (6) DNA के द्वारा जीवों में उत्परिवर्तन (change) होता है।
उत्तर :-RNA-RNA में मात्र एक सूत्र होता है तथा शर्करा राइबोज प्रकार की होती है। नाइट्रोजन आधारों में थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल नामक पिरीमिडीन होता है। कोशिका में निम्न तीन प्रकार के RNA मिलते हैं।
RNA के कार्य (Function of RNA)- (1) RNA का प्रमुख कार्य प्रोटीन अणुओं का संश्लेषण करना है। (2) DNA के कार्यों में सहायक होना होता है।
DNA और RNA में अन्तर लिखो :-
उत्तर :-DNA
(i) DNA में दो सूत्र होते हैं।
(ii) DNA में डिऑक्सी राइबोज शर्करा होती है।
(iii) DNA में नाइट्रोजन आधार एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तथा थाइमीन होते हैं।
(iv) DNA आनुवंशिकता का वाहक होने के साथ-साथ कोशिका की समस्त रासायनिक क्रियाओं पर नियंत्रण करता है।
RNA
(I) RNA केवल एक सूत्र का बना होता है।
(ii) RNA में राइबोज प्रकार की शर्करा ।
(iii) RNA में थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है।
(iv) DNA द्वारा निर्मित RNA प्रोटीन अणुओं के संश्लेषण में सहायता देता है।
उत्तर :-(1) कोशिका विभाजन परिपक्व कोशिकाओं सम्पत्र होता है। (2) इस प्रक्रिया द्वारा कोशिकाओं की मात्र संख्या में वृद्धि नहीं होती चरन् जीवधारी के आयतन में वृद्धि होते है। (3) कोशिकाओं के टूट-फूट की मरम्मत होती है। (4) गुणसूत्र की संख्या स्थिर बनी रहती है। (5) कोशिका विभाजन द्वारा प्रजनन में सहायता मिलती है एवं भ्रूण का विकास होता है।
उत्तर :- कोशिका विभाजन की क्रिया निम्नलिखित विधियों द्वारा सम्पत्र होती है-(1) स्वतंत्र कोशिका निर्माण (Free cell arrangement), (2) असूत्री विभाजन (Amitosis or Direct atomic division), (3) सूत्री कोशिका विभाजन (Mitosis) तथा (4) अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन (Meiosis)।
असूत्री कोशिका विभाजन :-कोशिका विभाजन को ऐसी विधि जिसमें मातृ कोशिका का केन्द्रक प्रत्यक्ष रूप से दो भागों में विभाजित होकर दो संतति कोशिकाओं की उत्पत्ति करता है, असूत्रौ विभाजन अथवा प्रत्यक्ष केन्द्रीय विभाजन कहलाती है।
इस विभाजन में केन्द्रक एक और या मध्य में पतला होने लगता है तथा अन्त में अत्यन्त पतला होकर दो भागों में बँट जाता है। यह विधि तब तक जारी रहती है जब तक कि मातृ- कोशिका के अन्दर बहुत सारे केन्द्रकों का निर्माण नहीं हो जाता। इस प्रकार से विकसित केन्द्रक छोटे-बड़े होते हैं। प्रत्यक्ष केन्द्रकीय विभाजन के बाद कोशिका विभाजन हो सकता है अथवा नहीं भी हो सकता है।
कोशिका विभाजन की यह सरल प्रक्रिया निम्न श्रेणी के जीवों; जैसे प्रोटोजोओं, शैवाल, कवक इत्यादि में होती है। इस विभाजन के फलस्वरूप जब समान आकार की कोशिकाओं का निर्माण होता है तो इसे भंजन (parting) कहते हैं तथा असमान कोशिकाओं का निर्माण होने पर मुकुलन (Maturing) कहते हैं।
उत्तर :- शारीरिक कोशिका (physical cell) के विभाजन की वह विधि जिसमें एक मातृ कोशिका के केन्द्रक के केवल एक बार विभाजन से समरूप तथा समान गुणसूत्र की संख्या वाली दो संतति कोशिकायें (girl cells) बनती है, समसूत्रण कहलाती है।
उत्तर :- अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन (Meiosis cell division)- अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन केन्द्रक विभाजन की वह विधि है जिसमें द्विगुणित गुणसूत्र की संख्या वाली एक मातृकोशिका के लगातार दो बार विभाजन के फलस्वरूप अगुणित गुणसूत्र की संख्या वाली चार पुत्री कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं।
• कोशिका चक्र (Cell Cycle) – कोशिका विभाजन के दौरान DNA का प्रतिकरण (replication), केन्द्र का विभाजन एवं कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है। इसके साथ-साथ कोशिका में वृद्धि भी होती है। किसी कोशिका के निर्माण से लेकर उसके विभाजन द्वारा पुत्री कोशिकाओं के बनने तक की क्रिया को कोशिका चक्र (cell cycle) कहते हैं।
हालांकि कोशिका में होने वाली वृद्धि एक सतत् (nonstop) प्रक्रिया है, लेकिन कोशिका चक्र की विभिन्न अवस्थानों में भिन्न-भिन्न कार्य सम्पादित होते हैं। उदाहरण के तौर पर, DNA का संश्लेषण कोशिका चक्र के एक खास अवस्था के दौरान होता है। संश्लेषित होने के बाद DNA का पुत्री कोशिकाओं में वितरण जटिल क्रियाओं द्वारा होता है। इन अवस्थाओं का आनुवंशिक नियंत्रण (hereditary control) होता है। विभाजन में सक्षम प्रत्येक कोशिका ( को कोशिका चक्र की अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है।
कोशिका चक्र की अवस्थाएँ (Periods of Cell cycle) : कोशिका चक्र की दो मुख्य अवस्थाएँ होती हैं-अंतरावस्था ( interphase) एवं माइटोटिक अथवा एम-अवस्था (Mitotic or M-phase)। कोशिका के वास्तविक विभाजन के पूर्व की अवस्था को अंतरावस्था कहते हैं। इस अवस्था में केन्द्रक चयापचयी तौर पर (metabolically) सक्रिय रहता है। इसके बाद को अवस्था को माइटोटिक अवस्था कहते हैं जिसमें केन्द्रक एवं कोशिका का वास्तविक विभाजन होता है।
अलग-अलग कोशिकाओं एवं जीवों के कोशिका चक्र की अवधि में अन्तर होता है; जैसे- मानव कोशिकाएँ लगभग २७ घंटे में एक बार विभाजित होती हैं। इस 24 घंटे के कोशिका चक्र में 95% समय अंतरावस्था में लगती है जबकि वास्तविक कोशिका विभाजन यानि माइटोटिक अवस्था लगभग एक घंटे की ही होती है। कई जीवों में कोशिका चक्र की अवधि बहुत कम होती है, जैसे योस्ट (yeast) कोशिकाएं लगभग 90 मिनटों में कोशिका चक्र पूरा करती हैं।
उत्तर :-अंतरावस्था के बाद कोशिका विभाजन की वास्तविक अवस्था को M-अवस्था या माइटोटिक अवस्था कहते हैं
समसूत्री (Mitosis)- कोशिका विभाजन की वह विधि जिसमें केन्द्र के एक बार विभाजन से समान गुण व गुणसूत्र की समान संख्या वाली दो संतति कोशिकायें उत्पन्न होती हैं, अर्द्धसूत्रण या अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन कहते हैं।
अवस्थान (Area)- समसूत्री कोशिका विभाजन की क्रिया शारीरिक कोशिकाओं (physical cells) में होती है, इसलिए इसे सोमैटोजिनेसिस (smatogenesis) भी कहते हैं। कोशिका विभाजन की इस क्रिया में मातृ कोशिका में गुणसूत्र की संख्या जितनी होती है, उसके द्वारा उत्पन्न संतति कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या समान ही होती है। अतः इस विभाजन को समीकरणीय विभाजन (equational division) के नाम से भी जानते हैं।
उत्तर :- कैरिओकाइनेसिस केन्द्रक विभाजन की एक विधी है। जो चार अवस्थाओं में सम्पन्न होती है। (a )पूर्वावस्था (b )मध्यावस्था (c ) पस्श्चावस्था (d )अंत्यावस्था
उत्तर :-कोशिका विभाजन की वह विधि जिसमें केन्द्र के एक बार विभाजन से समान गुण व गुणसूत्र की समान संख्या वाली दो संतति कोशिकायें उत्पन्न होती हैं, अर्द्धसूत्रण या अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन कहते हैं।
जो चार अवस्थाओं में सम्पन्न होती है। (a )पूर्वावस्था (b )मध्यावस्था (c ) पस्श्चावस्था (d )अंत्यावस्था
(a) पूर्वावस्था (Prophase)- ग्रीक भाषा में Ace अर्थात् First (प्रथम) यह माइटोसिस की प्रथम अवस्था है। इस अवस्था में क्रोमोजोम मोटे, घने तथा स्पष्ट हो जाते हैं तथा केन्द्रक झिल्ली केन्द्रक को चारों तरफ से स्पष्ट रूप से घेरे रहती है। इस अवस्था की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है-
(i) केन्द्रक का आकार तथा आयतन बढ़ जाता है। (ii) जल वियोजन (Lack of hydration) के फलस्वरूप केन्द्रक जालिका (atomic reticulum) फूल कर मोटी हो जाती है तथा निश्चित संख्या में घने, मोटे क्रोमोजोम के रूप में परिणित हो जाती है। (iii) प्रत्येक क्रोमोजोम सेन्ट्रोमीयर को छोड़कर लम्बे रूप में विभक्त होकर दो क्रोमेटिड (Chromatid) की रचना करता है। ये क्रोमेटिड सेन्ट्रोमीयर पर आपस में जुड़े रहते हैं। (iv) दोनों क्रोमेटिड परस्पर एक दूसरे के साथ सर्पिलाकार रूप में ऐंठे रहते हैं जिसे स्पाइरलाइजेशन (spiralization) कहते हैं।
b) मध्यावस्था (Metphase) यह दूसरी अवस्था है। यह अल्प स्थाई होती है। इस अवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं (1) मेटाफेज आरम्भ होने के पहले केन्द्रक झिल्ली तथा न्यूक्लिओलस पूर्ण रूप से विलुप्त हो जाते हैं। (I) जन्तु कोशिका में केन्द्रक के दोनों धुवों पर स्थित सेन्ट्रिओल से निकलने वाली तारक किरणें (astral beams) विस्तृत होकर स्पिण्डल तन्तु (shaft fiber) का निर्माण करती है। ये तर्क तन्तु आपस में संयुक्त होकर स्पिण्डल (axle) का निर्माण करते हैं।
(c) पश्चावस्था (Anaphase)- यह माइटोसिस विभाजना की तीसरी अवस्था है। ग्रीक में Ana का अर्थ back (पीछे) होता है। इस में अवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-(i) मेटाफेज के अन्त या एनाफेज के प्रारम्भ में सेन्ट्रोमीयर एक- एक क्रोमेटिड के साथ दो भागों में विभक्त हो जाता है। इस प्रत्येक सेन्ट्रोमीयर युक्त क्रोमेटिड को पुत्री क्रोमोजोम कहा जाता है। (ii) मातृ क्रोमोजोम से उत्पन्न दो पुत्री क्रोमोजोम (सेन्ट्रोमीयर युक्त क्रोमेटिड) विपरीत ध्रुवों की ओर आकर्षित होने लगते हैं। (iii) एनाफेज में इस प्रकार क्रोमोजोम को विप- रीत ध्रुवों की ओर गति करने की घटना को क्रोमोजोमीय गति कहते है।
(d) अन्यावस्था (Telophase) – Telo शब्द का ग्रीक अर्थ End (अन्त) है। यह माइयेसिस विभाजन की अन्तिम अवश्य है। इस अवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं होती है- (1) तर्क (Spindle) के दोनों ध्रुवों पर समान संख्या में क्रोमोजोम उपस्थित रहते हैं। (i) दोनों धुवों पर क्रोमोजोम को घेर कर एक एक झिल्ली का निर्माण हो जाता है। यह झिल्ली साइटोप्लाज्म में उपस्थित इन्डोप्लाज्मिक रेटिकूलम (endoplasmic reticulum) से उत्पन्न होती है। (ii) न्यूक्लिओलस (Nucleolus) पुनः उत्पन्न है जाता है।
(Q )वनस्पति कोशिका में साइटोकाइनेसिस और जन्तु कोशिका में साइटोकाइनेसिस में अंतर लिखो
उत्तर :-वनस्पति कोशिका में साइटोकाइनेसिस
1. इसमें साइटोकाइनेसिस की क्रिया सेल प्लेट बनने से होती है।
2. यह क्रिया अन्दर से बाहर की ओर होती है।
3. सेल प्लेट का निर्माण सेलूलोज द्वारा होता है।
4. सेल प्लेट द्वारा कोशिकाद्रव्य विभाजन की क्रिया सेल- प्लेटिंग कोशिका पट्टिका विधि (cell plating method) कहलाती है।
जन्तु कोशिका में साइटोकाइनेसिस
1. इसमें यह क्रिया खाँच (furrow) द्वारा होती है।
2. यह क्रिया वनस्पति कोशिका के विपरीत होती है।
3. कोशिका झिल्ली प्रोटीन अथवा लिपिड की बनी होती है।
4. जन्तु कोशिका द्रव्य विभाजन की क्रिया furrowing ) कहलाती है।
(Q )पादप तथा जन्तु कोशिका के समसूत्रण में अन्तर लोखो
उत्तर :-पादप कोशिका में समसूत्रण
1. पादप कोशिका में तर्कु मात्र केन्द्रक द्रव्य से बनता है।
2. इसमें सेण्ट्रोसोम का अभाव होता है।
3. पादप कोशिका में तर्कु का निर्माण मध्यावस्था में होता है।
4. इसमें सेण्ट्रोओल्स का विपरीत ध्रुवों की ओर जाना नहीं होता क्योंकि सेष्ट्रोसोम का अभाव होता है।
5. कोशिका द्रव्य विभाजन की विधि कोशिका पट्टी बनने के कारण होती है।
जन्तु कोशिका में समसूत्रण
1. जन्तु कोशिका में तर्क का निर्माण तारक किरणों तथा केन्द्रक द्रव्य से सम्मिलित रूप में होता है।
2. जन्तु कोशिका में सेष्ट्रोसोम कोशिका विभाजन में भाग लेता है।
3. इसमें यह पूर्वावस्था में निर्मित हो जाता है।
4. जन्तु कोशिका में सेण्ट्रोसोम के सेण्ट्रीओल्स विपरीत ध्रुवों की ओर जाते हैं।
5. इसमें कटान या खाँच बनने के कारण सम्पन्त्र होती है।
(Q )समसूत्री का महत्व लिखो
उत्तर :- समसूत्री का महत्व (Meaning of Mitosis)- समसूत्री कोशिका विभाजन के कुछ निम्नलिखित महत्व है-(1) एक मातृ कोशिका से उत्पन्न दो पुत्री कोशिकाओं में वही गुण तथा विशेषतायें आ जाती हैं जो मूल मातृ-कोशिका में थीं। इस तरह संतानें मातृ कोशिकाओं के अनुरूप ही होती हैं। (2) विभाजन वर्षों कोशिकाओं में होता है फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है। (3) समसूत्रण द्वारा एककोशिकीय जीवधारियों में अलैंगिक प्रजनन की क्रिया होती है।
(Q )अर्द्धसूत्री का महत्व लिखो
उत्तर :-अर्द्धसूत्री का महत्व (Meaning of Melosis)- अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के निम्न महत्व है-(1) इस विभाजन के फलस्वरूप सजीवों में गुणसूत्र की संख्या स्थिर बनी रहती है। (2) अर्द्धसूत्रण द्वारा नर तथा मादा इकाइयों का निर्माण होता है जो लैंगिक प्रजनन (sexual multiplication) के लिए आवश्यक है।
(3) इस विभाजन द्वारा नये-नये लक्षणों का विकास होता है क्योंकि इसमें विनिमय (getting over) द्वारा जीन्स (qualities) का आदान-प्रदान होता है। (अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के प्रथम पूर्वावस्था में समजात गुणसूत्र के क्रोमैटिड्स के जीन्स के आदान-प्रदान की क्रिया को विनिमय कहते हैं।) (4) इस विभाजन के फलस्वरूप माता-पिता तथा संतानों में विभिन्नतायें (varieties) आती हैं जो क्रम विकास (development) के लिए आवश्यक हैं।
(Q )समसूत्री तथा अर्द्धसूत्री में अन्तर लिखो
समसूत्री (Mitosis)
1. यह Physical cell के विभाजन की विधि है।
2. इस विभाजन के फलस्वरूप एक मातृ कोशिका से दो पुत्री कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं।
3. पुत्री कोशिकाओं में क्रोमोजोम की संख्या मातृ कोशिका के समान रहती है।
4. इस विभाजन में getting over की क्रिया नहीं होती।
5. इस विभाजन के फलस्वरूप शारीरिक अंगों में वृद्धि, विकास तथा टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है।
6. यह एक समरूप विभाजन (Equational division) है।
7. इसके प्रोफेज में कोई उपअवस्था (subphase) नहीं होता।
अर्द्धसूत्री (Meiosis)
1. यह Microbe cell विभाजन की विधि है।
2. इस विभाजन के फलस्वरूप एक मातृ कोशिका से चार पुत्री कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं।
3. पुत्री कोशिकाओं में क्रोमोजोम की संख्या मातृ कोशिका की आधी हो जाती है।
4. इस विभाजन में getting over की क्रिया होती है।
5. इस विभाजन के फलस्वरूप लैंगिक प्रजनन की इकाई (unit) बनती हैं; जैसे – स्पर्म (sperm) डिम्ब (ova) ।
6. यह एक ह्रास विभाजन (reductional division) है।
7. इसके प्रोफेज में पांच उप अवस्थायें पायी जाती हैं।
(2 .b )प्रजनन (reproduction )
(Q )प्रजनन (Multiplication) किसे कहते है।
उत्तर :-सजीव द्वारा अपने ही सदृश सन्तति को उत्पन्न करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं।” या, “जिस जैविक प्रक्रिया द्वारा कोई सजीव अपनी सन्तति की सृष्टि कर अपनी वंश परम्परा को कायम रखते हैं तथा वंश वृद्धिन करते हैं, उसे प्रजनन कहते हैं।
(Q )प्रजनन का महत्तव लिखो।
उत्तर :-(I) वंश परम्परा को कायम रखकर वंश वृद्धि करना (ii) पृथ्वी पर प्रजनन के द्वारा जीवों का संतुलन बना रहता है। (ii) प्रजनन के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी वंश परम्परा कायम रहती है। अन्यथा प्रजनन की क्रिया न होने से जीवों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। (iv) लैंगिक प्रजनन के माध्यम से जीवों के लक्षणों में विभिन्नतायें उत्पन्न होती हैं। ये विभिन्नतायें क्रम विकास (Development) में सहायक हैं। (v) लैंगिक प्रजनन द्वारा जीवों में उत्परिवर्तन (Transformation) की क्रिया होती है जो जीव विकास में सहायता करती है।
(Q )प्रजनन का प्रकार कितने प्रकार के होते है?उनके नाम लिखो और किसी एक का विस्तारपूर्वक वर्णन करो।
उत्तर :- प्रजनन का प्रकार (Kinds of multiplication) प्रजनन प्रायः चार प्रकार का होता है-
1. वर्धी प्रजनन (Vegetative multiplication) 2. अलैंगिक प्रजनन (Agamic multiplication) 3. लैंगिक प्रजनन (Sexual multiplication) 4. पार्थेनोजनेसिस (Parthenogenesis)
वर्धी प्रजनन (Vegetative Spread) – प्रजनन की वह प्रक्रिया जिसमें पौधे के शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग (Vegetative Part); जैसे-जड़, तना, पत्ती इत्यादि पौधे से अलग होकर नये पौधे का निर्माण करता है। इसके द्वारा विकसित पौधे जनक सदृश होते हैं तथा जनकों से अलग होकर स्वतन्त्र रूप से जीवनयापन में सक्षम होते हैं। यह प्रजनन प्राकृतिक (normal) व कृत्रिम (fake) दो प्रकार से होता है।
प्राकृतिक वर्धी प्रजनन (Regular vegetative proliferation)- पौधे के किसी वर्षी अंग द्वारा प्राकृतिक रूप से नये पौधे का विकास प्राकृतिक वर्षी प्रजनन कहलाता है। प्राकृतिक वर्षी प्रजनन पौधों में कुछ निम्न विधियों द्वारा होता है-
(a) पत्तियों द्वारा (Leaves)- पथरचट्टा (bryophyllum) की पत्तियों में पत्र कलिकायें मिलती हैं। ये अपस्थानिक कलिकायें (extrinsic buds) स्वतंत्र रूप से अनुकूल परिस्थितियाँ पाकर एक-एक पौधे को विकसित करने में समर्थ होती हैं।
(b) जड़ द्वारा (Roots)- शकरकन्द, डाहलिया इत्यादि पौधों में प्रजनन जड़ द्वारा होता है। इनकी जड़ों पर अनेक वर्षी कलिकायें मिलती हैं जो अनुकूल परिस्थिति पाकर जमीन के अन्दर विकसित होकर नये पौधों का निर्माण करती हैं।
(c) तना द्वारा (Stems)- जलकुम्भी (water hyacinth), खट्टी-बूटी ब्यदि पौधों का तना जल को सतह पर अथवा जमीन की सतह पर क्षैतिज दिशा में फैलता है। ऐसे पौधे संब एरियल पौधों तथा उनके तने कहलाते हैं। ऐसे पौधे अपनी गाँठों (hubs) पर ऊपर की और पत्तियों तथा नीचे की ओर जड़ों का समूह धारण करते हुए आगे बढ़ते हैं। मातु पौधे से टूटकर अलग होने पर ये स्वतंत्र रूप से नये पौधे का विकास कर लेते हैं।
जलकुम्भी (eichhornia) में वर्धी प्रजनन भूस्तरिका (offset) द्वारा इतनी तीव्रगति से होता है कि जलाशय में अन्य जीव-जन्तुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। साथ ही मछलियों की संख्या भी कम हो जाती है। इस विदेशी पौधे को “महाविपत्ति बंगाल का आतंक (fear of Bengal) भी कहते हैं।
आलू, हल्दी, अदरख जैसे कुछ भूमिगत जनों पर कलिकायें मिलती है जो अनुकूल परिस्थित्तियों में एक-एक पौधे का विकास करती हैं। दूब घास, पुदीना सरीखे कुछ पौधे भू प्रसारी होते हैं। इन पौधों की गाँठों में अपस्थानिक जहें (unusual roots) तथा कलिकायें निकलली है जिनसे नये-नये प्ररोह का निर्माण होता है और अलग होकर स्वतंत्र रूप में विकसित करते हैं।
कृत्रिम वर्धी प्रजनन (Fake vegetative proliferation)- कृत्रिम विधि द्वारा जब किसी पौधे का कोई भानी विभाजन के भाग काट कर अलग किया जाता है तथा कटा हुमा भाग नये पौधे के रूप में विकसित जाता है तो इसे कृत्रिम प्रका अन्य हार्मोनयुक्त कहते हैं। यह प्रजनन निम्न प्रकार से होता है-
(1) कलम लगाना (Cutting)- इसके लिए परिपक्व तने को (जो स्वस्थ हो) चुनते हैं तथा यह भी देख लेते हैं कि उसमें एक या दो गाँउँ अवश्य हो। ऐसे तने की एक शाखा को तेज धार वाले हथियार से काट लेते है ताकि उसके सभी अलक सुरक्षित रहें एवं तैयार की गई मिट्टी में गाह देते हैं। रोपने से पहले मदि ऑक्सीन के बोल में डुबाया जाय ती जड़ें जल्दी निकलती हैं। कुछ दिनों के बाद जड़ एवं अपस्थानिक कालिकायें विकसित होकर एक नया पौधा बनाती हैं। यह विधि गना, गुलाब, गुदहल जैसे पौधों में व्यवहार में लाई जाती है।
(2) रोपण (Uniting)- इस विधि में एक जड़युक्त पौधे को शाखा को छील कर उस पर उसी जाती के अच्छी किस्म के कटे हुए शाखा को खोल कर बाँधते हैं। एक जड़ युक्त पौधे की शाखा को स्टॉक (stock) तथा दूसरी कटी हुई शाखा को सियर्यान (scion) कहते है। दोनों शाखाओं (stock and scion) की मोटाई समान होनी चाहिए।
उत्तर :- वर्धी प्रजनन का महत्व (Meaning of vegetative generation) 1. इस वर्धी द्वारा उत्पन्न पौधे अपने जनक पौधों (parent plants) के समान फल तथा फूल उत्पन करते हैं। 2. इस विधि द्वारा कम समय से अधिक से अधिक पौधे उत्पन किये जा सकते हैं। 3. वर्षी प्रजनन में खर्च कम पड़ता है। 4. यह पौधों में प्रजनन की सबसे सरल विधि है। 5. बीज रहित पौधों में यही प्रजनन की विधि लागू होती है। 6. इस विधि द्वारा उत्पन पौधे शीघ्र फल तथा फूल उत्पन्न करने लगते हैं। 7. इस प्रजनन में उत्पन्न होने वाले पौधे जनक पौधे से अपनी खुराक ग्रहण करते रहते हैं।
उत्तर :-लैंगिक प्रजनन का महत्व (Meaning of sexual Generation) 1. कि इनर में उत्पन्तान में माता-पिता दोनों के गुणों का समावेश होता है। 2. प्रजनन की यह एक अतविधि है। इस प्रकार के जनन में विनिम (Getting over) की क्रिया होती है जिससे विभित्रतायें उत्पन होती हैं। 4. इन जीवों में अनुकूलन की प्रदुर क्षमता पायी जात है। 5. सन्तान अधिक स्वस्थ तथा प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। 6. अनुवांशिक क्षणों के संयोग से क्रमविकास में अधिक सहायक है।
उत्तर :-अलैंगिक प्रजनन का महत्व (Significance of Abiogenetic Multiplication): 1. यह प्रजनन की सरल विधि है। 2. इस प्रजनन में केवल एक ही जनक (Parent) की आवश्यकता पड़ती है। 3. इस प्रजनन में वंश वृद्धि की निश्चितता होती है जिससे सजीव के अस्तित्व को खतरा नहीं होता है। 4. वे प्राणी जिनमें लौगिक प्रजनन सम्भव नहीं होता उनमें अलैंगिक प्रजनन ही एक मात्र विधि है। 5. इस प्रजनन में वंश वृद्धि की दर तीव्र होती है। 6. इस प्रजनन द्वारा उत्पन्न जीव अपने जनक के सदृश होते हैं।
पर्थेनोजेनेसिस (Parthenogenesis)- प्रजनन की वह विशेष विधि जिसमें अण्डा बिना निषेचित हुए एक नये जीव के रूप में विकसित हो जाता है। इस क्रिया को पर्थेनोजेनेसिस करते हैं। नसिकीय क्षेत्री के पौधों, जैसे-भालबॉक्स, स्पाइरोगाइरा म्यूकर आदि में होती है तथा अमेदण्ड जन्तुओं (Spineless creatures) जैसे-चौडी, मधुमक्खी, बरें आदि में होती है।
उत्तर :-अलैंगिक प्रजनन (Abiogenetic proliferation)
1. इसमें अर्द्धसूत्री (Meiosis) का होना आवश्यक नहीं है।
2. इसमें युग्मक की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
3. इसमें उत्पन्न जीव जनक के समान होते हैं तथा विभिन्नतायें उत्पन्न नहीं होती हैं।
4. इस विधि में सन्तान उत्पन्न होने की निश्चितता रहती है।
5. इसमें युग्मज (zygote) का निर्माण नहीं होता है।
6. इस विधि द्वारा उत्पन्न सन्तानों में अनुकूलन की क्षमता बहुत कम होती है।
7. इस प्रजनन की इकाई बीजाणु (spore) है।
लैंगिक प्रजनन (Sexual generation)
1. इस विधि में अर्द्धसूत्री (Meiosis) विभाजन आवश्यक है।
2. इस प्रजनन में नर तथा मादा युग्मक का संयोग होता है।
3. इस प्रजनन में उत्पन्न जीव में माता तथा पिता दोनों के गुणों का समावेश होता है फलस्वरूप विभिन्नतायें उत्पन्न होती हैं।
4. इस विधि में सन्तान उत्पन्न होने की निश्चितता नहीं रहती।
5. इसमें युग्मज (zygote) का निर्माण होता है।
6. इस विधि द्वारा उत्पन्न सन्तानों में अनुकूलन की क्षमता अधिक होती हैं।
7. इस प्रजनन की इकाई युग्मक (gamete) है।
(2 .c )पुष्पीय पौधों में लैंगिक प्रजनन
(Q )कंजुगेसन क्या है ?
उत्तर :-कंजुगेसन (formation), लैंगिक प्रजनन की वह विधि है जिसमें एक ही प्रजाति के दो अलग-अलग गैमीट्स का अस्थायी संयोग होता है। इस क्रिया में दोनों कोशिकाओं का जीवद्रव्य स्थायी रूप से आपस में मिलकर नये जीव की उत्पत्ति करते हैं।
(Q )पूर्ण फूल किसे कहते है ?
उत्तर :-चारों चक्र वाले फूल को पूर्ण फूल (complete blossom) कहते हैं। जैसे-गुड़हल, कमल इत्यादि। कुम्हड़ा का पुष्प अपूर्ण (inadequate) होता है क्योंकि इसमें चारों चक्र नहीं मिलते।
(Q )उभयलिंगी या द्विलिंगी किसे कहते है ?
उत्तर :-कुछ फूलों में नर तथा मादा दोनों जनन अंग उपस्थित होते हैं। ऐसे फूल उभयलिंगी या द्विलिंगी कहलाते हैं। जैसे-मटर, जवा इत्यादि।
(Q )पौधों में परागण की प्रकिर्या का विस्तार पूर्वक वर्णन करो ?
उत्तर :-परागण (Pullination) :-परागकोष से उत्पन्न परागकणों के उसी फूल या उस जाति के दूस फूलों के वर्तिकाग्र (disgrace) तक पहुँचने की क्रिया परागण कहलाती है। परागण दो प्रकार का होता है
(a) स्व-परागण (Self fertilization)- जब एक ही फूल के परागकण उसी फूल के वर्तिकारता या उसी पौधे के दूस फूल के वर्तिकाय पर पहुंचते हैं, तो इसे स्व-परागण कहते हैं। उदाहरण उभयलिंगी पैौध जैसे-सूर्यमुखी। (b) पर-परागण (Cross fertilization)- जब एक फूल के परागकण दूसरे पौधे पर स्थित फूल के वर्तिवपत्र तक पहुँचते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं।
स्व-परागण के गुण (Benefits of self fertilization) – (1) पुंकेसर और अण्डप दोनों एक ही समय पर परि होते हैं इसलिए निषेचन का होना निश्चित है। (2) इस परागण द्वारा आनुवांशिक लक्षण संरक्षित रहते हैं। (3) पराग मिलन में सम्भावना अधिक होती है क्योंकि परागकण व्यर्थ नहीं जाते। (4) पराग मिलन के लिए बाहरी कारकों की आवश्यकता नई होती। (5) जाति की शुद्धता बनी रहती है।
स्व-परागण के दोष (Negative marks of self fertilization)- (1) लगातार स्वपरागण से सन्तति कमजोर होने लगते है। (2) बीज की गुणवत्ता घटने लगती है। (3) सनाति में प्रतिरोधक क्षमता पौड़ी-दर-पीड़ी पहनी जाती है।
(b )पर-परागण के गुण (Benefits of cross fertilization)- (1) संताने काफी स्वस्थ होती हैं तथा जीवन संघर्ष को क्षमता वाली भी। (2) बीज स्वस्थ, अधिक मात्रा में तथा अधिक दिनों तक जीवित रहने वाले होते हैं। (3) बीजों में अंकुरण का प्रतिशत अधिक होता है। (4) पर-परागण से नई किस्में विकसित होती है। (5) इस विधि से उत्पन हुए पौधों में अपने वातावर के अनुकूल हो जाने की क्षमता होती है।
पर-परागण के दोष (Negative marks of cross fertilization)- (1) इसके लिए पौधों को बाहरी कारकों पर निर्भर रह है। (2) यह निश्चित नहीं होता। (3) परागकणों का नुकसान अधिक होता है। (4) संतति में ग्रानिकारक प्रभावी गुण एकट हो जाते है।
(Q )कोशिकायें युग्मक किसे कहते है ?
उत्तर :-दो विशेष प्रकार की कोशिकाओं के आपस में संयोग करने से जब नये जीव का विकास हो, तब इस प्रजनन को लिंगी प्रजनन कहते हैं। प्रजनन की ये विशेष कोशिकायें युग्मक (gametes) कहलाती हैं।
(Q )ओभा किसे कहते है ?
उत्तर :-लैंगिक प्रजनन में भाग लेने वाले नर तथा मादा गैमीट्स भिन्न प्रकृति के होते हैं, तो उन्हें एनाइसोगैमीट्स (anisogametes) कहते हैं तथा इनके समकेन को एनाइसोगैमी कहते हैं। इसमें नर गैमीट छोटा एवं चल होता है तथा स्पर्म कहलाता है और मादा बड़ा तथा निष्क्रिय होता है जिसे ओभा (Ova) कहते हैं।
(2 .d )वृद्धि और विकाश
(Q ) वृद्धि की परिभाषा लिखो ?
उत्तर :-जीवन द्रव्य की मात्रा के बढ़ने से किसी जिव के शारीरिक लम्बाई अथवा आयतन में होने वाले अपरिवर्तनशील विस्तार को उस जिव की वृद्धि कहते है।
(Q )पोधो में वृद्धि का वर्णन करो ?
उत्तर :-जिस प्रकार सभी जिव में वृद्धि होती है। ठीक उसी प्रकर पौधों में भी वृद्धि होती है। पौधों में वृद्धि के निम्न लिखित तीन चरण है। (1 )कोशिका विभाजन (2 )कोशिका दीर्घन (3 )कोशिका विभेदन।
(Q ) पौधों में वृद्धि और जिव में वृद्धि में अंतर लिखो।
उत्तर :-पौधों में वृद्धि (Development in plants)
1. यह पौधों के शीर्ष भाग में होती है।
2. यह जीवन-पर्यन्त होती रहती है।
3. पौधों में वृद्धि असिमेट्रिकल होती है।
4. वृद्धि निश्चित नहीं होती।
5. भ्रूणीय अवस्था में वृद्धि कुछ समय तक सुप्त-अवस्था में रहती है।
6. पौधों में वृद्धि के लिए प्रकाश एवं ०, आवश्यक कारक होते हैं।
जीवों में वृद्धि (Development in creatures)
1. यह सम्पूर्ण शरीर में होती है।
2. यह एक निश्चित उम्र तक होती है।
3. प्राणियों में वृद्धि सिमेट्रिकल होती है।
4. वृद्धि निश्चित होती है।
5. प्राणियों में ऐसा नहीं होता।
6. प्राणियों की वृद्धि के लिए ये आवश्यक नहीं हैं।
(Q ) विकास किसे कहते है ?
उत्तर :-वह क्रिया को जन्म लेने से शुरू होती है और मृत्यु के बाद समाप्त हो जाती है उसे विकाश कहते है। जिव -जंतु का हमेशा विकाश होता रहता है।
(Q ) मनुष्य में विकास की क्रिया का वर्णन करो ?
उत्तर :- परुष की शुक्राणु और मादा का अंडाणु मिलने मनुष्य का जन्म होता है। परन्तु इसके बाद भी विकाश नहीं रुकता। मादा के गर्भ में सम्पूर्ण शरीर का विकाश होता है। इसमें नौ महीने का समय लगता है।
बच्चे के विकास की चर्चा करें तो उसका विकास जन्म से पहले गर्भ में ही शुरू हो जाता है तथा वह गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था जैसी अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की प्राप्ति करता है। यद्यपि वृद्धि एवं विकास का व्यवहार हम एक ही प्रकार की क्रियाशीलता के लिए करते हैं पर वास्तव में दोनों भिज क्षेत्र है। जिस तरह परिवेश व वातावरण में हम अन्तर करते हैं वैसे ही वृद्धि एवं विकास समानार्थी नहीं।
विकास एक सतत प्रक्रिया है जबकि वृद्धि आजीवर होना संभव नहीं। विकास का व्यवहार हम परिवर्तनों के साथ-साथ व्यावहारिक परिवर्तनों के लिए भी करते हैं जबकि वृद्धि केवल परिमाणात्मक परिवर्तनों के लिए। आओ। मानव विकास की विभित्र अवस्थाओं का अध्ययन किया जाये जो निम्न हैं-
शैशवावस्था (Beginning phases)- जन्म से 6 वर्ष तक की उम्र शैशवावस्था कहलाती है। इसमें से 03 वर्ष की उम्र तक बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक विकास तीख गति से होता है। इसी अवस्था में बच्चों में अनुकरण तथा दोहराने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इसलिए शिक्षा के दृष्टिकोण से यह अवस्था अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा परिवार से बढ़कर इस कार्य के लिए दूसरी कोई पाठशाला नहीं हो सकती। अतः बच्चों में अच्छे गुणों के विकास के लिए अभिभावकों का जीवन तथा परिवार का वातावरण आदर्श होने चाहिए।
बाल्यावस्था (Youth)- 06 से 12 वर्ष की अवस्था चाल्यावस्था है जिसमें बच्चों के चिन्तन तथा तर्क शक्तियों का विकास होता है। पारिवारिक वातावरण से अलग विद्यालयों वातावरण में बच्चों को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होता है जिसको वे घर पर नहीं सीख पाते।
किशोरावस्था (Youth)- 12 वर्ष से 18 वर्ष तक की आयु किशोरावस्था है। किशोरावस्था में होने वाले कुछ परिवर्तन बालक एवं बालिकाओं में सदृश होते हैं। किशोरावस्था की सबसे बड़ी समस्या यौन समस्या की होती है क्योंकि इस काल में प्रजनन अंगों का तेजी से विकास होता है, फलस्वरूप अपने जैसे विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लगता है। किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन की अवस्था यौवनारम्भ (pubescence) कहलाती है। इस समय शरीर में होने वाले सभी परिवर्तन अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्स्रावित हार्मोन्स के प्रभाव से होते हैं।
(Q )शैशवावस्था में शिक्षा का स्वरूप का वर्णन करो।
उत्तर :-शैशवावस्था में शिक्षा का स्वरूप (1) बच्चा सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता को महसूस करता है। इसलिए पर तथा विद्यालय का वातावरण तद्नुरूप होना बाहिए। (2) बच्चों में आत्म-प्रदर्शन की भावना को ध्यान में रखते हुए, उसे ऐसे कार्य दिए जाने चाहिए जिससे वह अपनी भावना को व्यक्त कर सके। (3) बच्चों को खेल द्वारा शिक्षा अधिक प्रभावकारी होगा।
(Q )बल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप का वर्णन करो।
उत्तर :-बल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप (1) विषय वस्तुओं को बच्चों की रूचि के अनुसार विकसित किया जाना चाहिए ताकि शिक्षा के प्रति उसका आकर्षण बना रहे। (2) शारीरिक-दण्ड, बल-प्रयोग, डॉट-फटकार आदि बच्चों की पसन्द नहीं, इसलिए उनकी शिक्षा प्रेम एवं सहानुभूति पर आधारित होनी चाहिए। (3) कौल एवं दूस ने इस काल को संदेशात्मक विकास का काल माना है। अतः बच्चों के संवेगों का दमन करना उचित नहीं, नहीं तो डौन-भावना के विकास से उसका अपना विकास बाधित होगा। (4) बच्चे जिज्ञासु प्रवृति के होते हैं इसलिए उन्हें दी जाने वाली शिक्षा ऐसी हो जो उन्हें सन्तुष्ट कर सके।
(Q )किशोरावस्था में शिक्षा का स्वरूप वर्णन करो।
उत्तर :-किशोरावस्था में शिक्षा का स्वरूप (1) सामूहिक खेल, स्काउटिंग/गाइडिंग जैसे क्रिया-कलाप बच्चों की मानसिक शक्तियों के साथ-साथ शारीरिक विकास के लिए अत्याधिक आवश्यक हैं जिसे उनकी शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए। (2) किशोरावस्था में निराशा की भावना से बच्चे आपराधिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर हो जाते हैं। अतः नकारात्मक सोच को घर एवं विद्यालय के वातावरण से दूर रखने की आवश्यकता है
notice : इस article लिखने के लिए हमने west bengal sylabus के class 10 के life science book का help लिए। हमारा उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना है। Google से गुजारिश है हमारे post को रैंक करे और छात्रों को शिक्षित करने में हमारी मदद करे।