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भारत माता का मन्दिर

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भारतमाता का मंदिर

- मैथिलीशरण गुप्त

भारतमाता का मंदिर का व्यख्या :

1.भारतमाता का मंदिर यह समता का संवाद जहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।

जाति धर्म या सम्प्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहाँ, सबका स्वागत, सबका आदर, सब का सम सम्मान यहाँ।

राम-रहीम, बुद्ध ईसा का सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ, भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।

भारतमाता का मंदिरप्रसंग:
यह कविता भारत माता के मंदिर की भावना और आदर्शों को प्रस्तुत करती है। यह मंदिर उस स्थान का प्रतीक है जहाँ समता (समानता) और एकता का संदेश दिया जाता है। 

यहाँ सभी धर्मों, संस्कृतियों और जातियों का सम्मान किया जाता है, और सभी को समान रूप से कल्याण का अवसर मिलता है।

सन्दर्भ:
कविता के माध्यम से यह बताया जा रहा है कि भारत की आत्मा में विविधता में एकता है। विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच कोई भेदभाव नहीं होता, और हर किसी का स्वागत और सम्मान किया जाता है।

 यह हमारे देश की विशेषता है कि यहाँ राम, रहीम, बुद्ध और ईसा के उपदेशों का एक जैसा महत्व है, और सभी को ज्ञान और गुणों का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलता है।

व्याख्या:
“भारत माता का मंदिर यह समता का संवाद जहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।”

यहाँ भारत माता के मंदिर की बात हो रही है, जो समानता का प्रतीक है। इस मंदिर में सभी का कल्याण होता है और सबको बिना किसी भेदभाव के आशीर्वाद (प्रसाद) प्राप्त होता है। 

यह बताता है कि भारत में सभी लोग, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से हों, समान रूप से अधिकार और आदर प्राप्त करते हैं।
“जाति धर्म या सम्प्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहाँ, सबका स्वागत, सबका आदर, सब का सम सम्मान यहाँ।”

इस पंक्ति में कहा गया है कि यहाँ किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव नहीं होता। हर किसी का यहाँ स्वागत और सम्मान किया जाता है। 

यह भारत की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है कि यहाँ सभी को समान रूप से देखा जाता है और हर किसी का आदर किया जाता है।
“राम-रहीम, बुद्ध ईसा का सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ, भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।”

यहाँ यह बताया गया है कि चाहे राम हों, रहीम हों, बुद्ध हों या ईसा, सभी का एक समान रूप से ध्यान और सम्मान होता है। यहाँ विभिन्न संस्कृतियों और उनके गुणों का ज्ञान दिया जाता है, जिससे लोगों को एक दूसरे की सांस्कृतिक धरोहरों का आदर करने की शिक्षा मिलती है।

 यह भारत की बहुलतावादी संस्कृति को दर्शाता है।
यह कविता भारत की महान परंपरा, एकता और विविधता का संदेश देती है, जहाँ सभी को समान रूप से आदर, सम्मान और कल्याण का अधिकार प्राप्त है।

2.नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।

सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना लें हम, आओ यहाँ अजात शत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।

रेखाएँ प्रस्तुत हैं अपने मन के चित्र बना लें हम, सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।

प्रसंग:
यह कविता जीवन के आदर्शों और मूल्यों को सामने लाती है। कवि यहाँ प्रेम, शांति, और सद्भावना का संदेश देते हैं। वे वैर, द्वेष और नफरत को छोड़कर सबको मिलकर एक आदर्श चरित्र और जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। इस कविता का मुख्य उद्देश्य है कि हम सभी अपने मन को पवित्र बनाएं और एकता, प्रेम, और भाईचारे का वातावरण बनाएं।

सन्दर्भ:
इस कविता का सन्दर्भ उस जीवन दर्शन से जुड़ा है, जो प्रेम और शांति को सर्वोपरि मानता है। कवि हमें वैर, दुश्मनी और नफरत से दूर रहकर अपने जीवन को प्रेम और सद्भावना से भरने की प्रेरणा देता है। यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है, जहाँ प्रेम, मित्रता और मानवता के आदर्शों को उच्च माना गया है।

व्याख्या:
“नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।”

इस पंक्ति में कवि यह कह रहे हैं कि हमें वैर या द्वेष की बुद्धि नहीं चाहिए। हमें प्रेम का उन्माद या उत्साह चाहिए, क्योंकि यही वह मार्ग है, जो सभी के कल्याण की ओर ले जाता है। 

यहाँ शिव का कल्याण प्रतीकात्मक रूप से पूरे समाज और मानवता के कल्याण का प्रतीक है, और यह कल्याण सभी को प्राप्त होता है, ठीक वैसे ही जैसे सभी को बिना भेदभाव के प्रसाद मिलता है।

“सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना लें हम, आओ यहाँ अजात शत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।”

इस पंक्ति में कवि यह संदेश देते हैं कि सच्चा तीर्थ किसी स्थान विशेष पर नहीं, बल्कि हमारे अपने हृदय में होता है। यदि हम अपने दिल को पवित्र बना लें, तो वह सबसे बड़ा तीर्थ बन जाता है। हमें अपने दिलों से दुश्मनी निकालकर सभी को मित्र बनाना चाहिए।

 ‘अजात शत्रु’ का अर्थ है वह व्यक्ति, जिसका कोई शत्रु न हो। कवि हमें यही प्रेरणा दे रहे हैं कि हम अपने हृदय से द्वेष और नफरत को मिटा दें और सबके प्रति मित्रता का भाव रखें।
“रेखाएँ प्रस्तुत हैं अपने मन के चित्र बना लें हम, सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।”

इस पंक्ति में कवि यह कह रहे हैं कि हमारे मन में अनेक भावनाएँ और विचार रेखाओं की तरह उपस्थित हैं। हमें इन्हें मिलाकर एक सुंदर चित्र बनाना है। इसी तरह, हमें समाज के विभिन्न आदर्शों को अपने जीवन में शामिल करके एक आदर्श चरित्र का निर्माण करना चाहिए। यह आदर्श चरित्र ही हमारा सच्चा व्यक्तित्व और जीवन का मार्गदर्शक होगा।

निष्कर्ष:
कविता हमें प्रेम, मित्रता, और चरित्र निर्माण की प्रेरणा देती हैइसमें यह संदेश छिपा है कि यदि हम वैर और द्वेष को छोड़कर अपकोटि-कोटि कंठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यने दिल को पवित्र बना लें, तो हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज और दुनिया को भी शांति और सद्भाव का संदेश दे सकते हैं।

3.कोटि-कोटि कंठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।

मिला सत्य का हमें पुजारी, सफल काम उस न्यायी का मुक्ति-लाभ कर्त्तव्य यहाँ है, एक-एक अनुयायी का,

बैठो माता के आंगन में, नाता, भाई-भाई का, एक साथ मिल बैठ बाँट लो, अपना हर्ष-विषाद यहाँ

प्रसंग:

यह कविता भारत माता और उसके प्रतीक स्वरूप समाज की एकता, शांति और न्याय की भावना को प्रकट करती है। कवि यह संदेश देते हैं कि जब सब लोग एक साथ मिलकर प्रेम और सद्भावना से जीवन जीते हैं, तो समाज में कल्याण और समृद्धि का वातावरण बनता है। 

यह कविता एक आदर्श समाज की कल्पना करती है, जहाँ सत्य, न्याय और भाईचारे का बोलबाला है।

सन्दर्भ:

कविता में भारत माता के आंगन को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव के साथ बैठते हैं, और एक-दूसरे के सुख-दुःख को बाँटते हैं। कवि यह सन्देश दे रहे हैं कि यदि हम सत्य और न्याय के पथ पर चलें, तो हमें जीवन में शांति और मुक्ति का मार्ग मिल सकता है।

व्याख्या:इस पंक्ति में कवि यह कहते हैं कि जब लाखों लोगों की आवाज एक साथ मिलकर एक जयनाद (विजय की आवाज) उठाती है, तो वह आवाज एकता और सामूहिकता का प्रतीक बन जाती है। यहाँ शिव का कल्याण सभी के लिए उपलब्ध है, और सभी को समान रूप से प्रसाद मिलता है।

 यह पंक्ति बताती है कि जब समाज में एकता और सद्भाव होता है, तो सभी को समान रूप से लाभ और खुशी प्राप्त होती है।

 

इस पंक्ति में कवि बताते हैं कि हमें एक ऐसा नेता मिला है, जो सत्य और न्याय का पुजारी है। उसके कार्य सफल हैं क्योंकि वह न्याय के मार्ग पर चलता है। कवि यह सन्देश देते हैं कि हर अनुयायी का कर्त्तव्य है कि वह सत्य और न्याय के मार्ग पर चलकर मुक्ति (आंतरिक शांति) प्राप्त करे। यह पंक्ति सामाजिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को उजागर करती है।

इस पंक्ति में कवि हमें भारत माता के आंगन में बैठने और भाईचारे के संबंधों को मजबूत करने की प्रेरणा देते हैं। यह एक ऐसा स्थान है, जहाँ हम सभी एक साथ बैठकर अपने सुख-दुःख को बाँट सकते हैं।

 यह पंक्ति इस बात का प्रतीक है कि जब हम सभी एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं और एक-दूसरे के अनुभवों को साझा करते हैं, तो हमारे जीवन में शांति और संतुलन आता है।

निष्कर्ष:

यह कविता हमें एक ऐसे समाज की ओर प्रेरित करती है, जहाँ एकता, प्रेम, न्याय और भाईचारा हो। कवि हमें सिखाते हैं कि सत्य और न्याय का पालन करने से हम मुक्ति और शांति प्राप्त कर सकते हैं, और जब हम सभी मिलकर एक-दूसरे के साथ सुख-दुःख बाँटते हैं, तो समाज में शांति और समृद्धि का वातावरण बनता है।

(1)भारत माता के मंदिर में किसका संवाद होता है?

उत्तर :-ममता का

(2) ‘ईसा’ किस धर्म के संस्थापक थे?

उत्तर :-ईसाई धर्म

(3) ‘मिला सत्य का हमें पुजारी’ किसे कहा गया है?

उत्तर :-महात्मा गाँधी को

(4)अज्ञात शत्रु’ बनने के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर :-सबको मित्र बना लेना।

भारतमाता का मंदिर का लघुत्त्रिय प्रश्न:

(1)भारत माता का मंदिर किसे कहा गया है?

उत्तर :-भारत माता का मंदिर भारत वर्ष को कहा गया है ।

(2) भारत में किस बात का भेद-भाव नहीं है?

उत्तर :-भारत में जाती -पाती,धर्म  और सम्प्रदाय का भेद भाव नही है 

(3) तीर्थ’ किसे कहते है?

उत्तर :-किसी पवित्र स्थल को तीर्थ कहते है ।

(4)भारत के लोग किसके अनुयायी हैं?

उत्तर :-भारत के लोग महात्मा गाँधी के  अनुयायी हैं ।

(5 ) ‘भाई-भाई’ आपस में क्या बांटते हैं?

उत्तर :-‘भाई-भाई’ आपस में हर्ष और विषाद बांटते  हैं ।

भारतमाता का मंदिर का बोधमुलक प्रश्न:

उत्तर :-‘भारत माता का मंदिर’ कविता में रचनाकार ने भारतीयों से यह अपेक्षा की है कि वे एकता, समता और भाईचारे का पालन करें। रचनाकार ने यह संदेश दिया है कि जाति, धर्म, या सम्प्रदाय के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

सभी को समान रूप से सम्मान, प्रेम और आदर प्राप्त हो, और सभी का कल्याण सुनिश्चित किया जाए। 

कवि यह भी अपेक्षा करता है कि लोग शांति, सद्भाव और मानवता के मार्ग पर चलें, जहाँ हर किसी का स्वागत हो और सभी को समाज में समान अधिकार मिलें।

उत्तर :- भारत  माता के मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं यह समता और एकता का प्रतीक है, जहाँ जाति, धर्म या सम्प्रदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

यहाँ सभी का स्वागत और आदर होता है, और हर व्यक्ति को समान सम्मान प्राप्त होता है। यह स्थान प्रेम, शांति, और सद्भाव का केंद्र है, जहाँ सभी के कल्याण की कामना की जाती है।

इस मंदिर में राम, रहीम, बुद्ध और ईसा जैसे महान व्यक्तित्वों का समान रूप से ध्यान किया जाता है, जिससे विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का आदर किया जाता है।  यहाँ सभी को प्रसाद रूपी आशीर्वाद समान रूप से प्राप्त होता है, जो यह दर्शाता है कि यहाँ कोई भेदभाव नहीं है।

 

 उत्तर :-“भिन्न-भिन्न भव-संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ” के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं का आदर किया जाता है।

यहाँ प्रत्येक संस्कृति के विशेष गुणों और गौरवमयी इतिहास का सम्मान होता है, और लोग एक-दूसरे की विविधताओं से सीखते हैं।

यह पंक्ति यह भी बताती है कि भारत की पहचान उसकी विविधता में है, और इस विविधता को समझना और उसका आदर करना सभी के लिए आवश्यक है। यह संदेश समानता, सद्भाव और सहिष्णुता का महत्व दर्शाता है।

उत्तर :-एक साथ मिल बैठ बाँट ली, अपना हर्ष विषाद यहाँ’ का भाव यह है कि समाज में सभी लोग एकजुट होकर अपने सुख-दुःख को आपस में साझा करें।

यह पंक्ति आपसी सहयोग, भाईचारे और एकता की भावना को प्रकट करती है।

इसमें यह संदेश है कि चाहे जीवन में खुशी हो या दुख, हमें उन्हें अकेले नहीं सहना चाहिए, बल्कि मिलकर साथ बिताना चाहिए। जब हम एक-दूसरे के साथ अपने हर्ष (सुख) और विषाद (दुःख) बाँटते हैं, तो जीवन का बोझ हल्का होता है और समाज में प्रेम और सद्भाव बना रहता है।

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