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– आचार्य विनोबा भावे
श्रम की प्रतिष्ठा निबंध का वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
(क) ‘श्रम की प्रतिष्ठा’ किस विधा की रचना है?
उत्तर: निबंध
(ख) श्रम की प्रतिष्ठा के लेखक का नाम है-
उत्तर: आचार्य विनोबा भावे
(ग) जो शख्स पसीने से रोटी कमाता है वह हो जाता है-
उत्तर: धर्म पुरुष
(घ) आज समाज में किसकी प्रतिष्ठा नहीं है?
उत्तर: (i) श्रम की
श्रम की प्रतिष्ठा निबंध का लघुत्तरीय प्रश्न :
1. आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर: आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम विनायक राव भावे था ।
2. पृथ्वी का भार किसके मस्तक पर स्थित है?
उत्तर: पृथ्वी का भार उस व्यक्ति के मस्तक पर स्थित है जो श्रम करता है।
3. किसने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है?
उत्तर: आचार्य विनोबा भावे ने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है।
4. कौन सा शख्स धर्म-पुरुष हो जाता है?
उत्तर: जो व्यक्ति अपने पसीने की मेहनत से रोटी कमाता है, वह धर्म-पुरुष हो जाता है।
5. अपने समाज में किसकी प्रतिष्ठा नहीं है?
उत्तर: अपने समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं है।
श्रम की प्रतिष्ठा निबंध का बोधमूलक प्रश्न :
1. धर्मपुरुष
किसे कहा जाता है?
उत्तर: धर्मपुरुष उस व्यक्ति को कहा जाता है जो ईमानदारी से मेहनत करके अपनी जीविका कमाता है। श्रम का सम्मान और उसकी महत्ता समझने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में धर्म का पालन करता है।
2. कौन से लोग हैं जो खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, काम नहीं कर सकते?
उत्तर: वृद्ध और असहाय लोग, जो अब काम नहीं कर सकते, उन्हें यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वे केवल भोजन ग्रहण कर सकते हैं और दूसरों को आशीर्वाद दे सकते हैं। उनके पास श्रम करने की शक्ति नहीं होती, इसलिए वे समाज में आशीर्वाद देने वाले के रूप में देखे जाते हैं।
3. ‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबंध का सारांश लिखिए।
उत्तर: आचार्य विनोबा भावे के निबंध ‘श्रम की प्रतिष्ठा’ में समाज में श्रम की उपेक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। निबंध में बताया गया है कि हमारे समाज में श्रम को उचित स्थान और सम्मान नहीं दिया जाता, जबकि हर प्रकार का श्रम महत्वपूर्ण है। विनोबा भावे ने इसे कर्मयोग के रूप में देखा और मजदूरों को कर्मयोगी कहा। उन्होंने इसे समाज के विकास का मूल आधार बताया और हमें श्रम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दी।
4. ‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबंध से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: इस निबंध से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हम श्रम का सम्मान करें और यह समझें कि हर कार्य, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, समाज के लिए महत्वपूर्ण है। श्रम का महत्व समझते हुए, हर इंसान को अपने कार्य में गर्व महसूस करना चाहिए और दूसरों के श्रम का भी आदर करना चाहिए।
5. “लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता” इसके रचनाकार का नाम बताते हुए पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस कथन के रचनाकार आचार्य विनोबा भावे हैं। इसका आशय यह है कि कर्म करना मात्र ही कर्मयोग नहीं कहलाता, बल्कि कर्म में समर्पण, ईमानदारी, और समाज के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण आवश्यक होता है। कर्मयोगी वह है जो निःस्वार्थ भाव से कार्य करता है और अपने श्रम के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता है।