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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'की कविता प्रियतम

(1)एक दिन विष्णुजी के पास गए नारदजी पूछा, “मृत्युलोक में वह कौन है पुण्यश्लोक भक्त तुम्हारा प्रधान ?” विष्णुजी ने कहा, “एक सज्जन किसान है प्राणों से प्रियतम।” “उनकी परीक्षा लूँगा”, हँसे विष्णु सुनकर यह, कहा “ले सकते हो।”

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘प्रियतम’ से ली गई हैं। इस कविता में निराला ने एक किसान के प्रति भगवान विष्णु की भक्ति और उसके परीक्षण की बात की है। 

यह प्रसंग उस समय का है जब नारदजी, जो देवताओं के संदेशवाहक और भक्तों की भक्ति के प्रति उत्सुक रहते हैं, भगवान विष्णु से यह जानने आते हैं कि मृत्युलोक में कौन सबसे बड़ा भक्त है। विष्णुजी उन्हें एक सज्जन किसान का नाम बताते हैं, और नारदजी उसकी परीक्षा लेने की इच्छा प्रकट करते हैं।

सन्दर्भ:
यह कविता मानव जीवन और उसकी कठिनाइयों के बावजूद उसकी ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति का चित्रण करती है। किसान को भगवान विष्णु का प्रियतम बताया गया है, जो उसके सरल और निस्वार्थ भक्ति का प्रतीक है। नारदजी द्वारा उसकी परीक्षा लेने की बात उठाना यह दर्शाता है कि वास्तविक भक्ति का मूल्यांकन कठिन परिस्थितियों में होता है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में कवि ने नारदजी और भगवान विष्णु के संवाद का वर्णन किया है। नारदजी ने विष्णुजी से पूछा कि मृत्युलोक में कौन उनका सबसे बड़ा भक्त है। विष्णुजी ने एक साधारण किसान को इसका उत्तर दिया, जिसे नारदजी आश्चर्यचकित होकर उसकी परीक्षा लेने की इच्छा जताते हैं। यह कविता भक्त और भगवान के रिश्ते की गहराई और सादगी को दर्शाती है, जहाँ ईश्वर के प्रिय वह होते हैं जो जीवन में सरलता और निष्ठा से अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते हैं।

(2) नारदजी चल दिये पहुँचे भक्त के यहाँ देखा, हल जोत कर आया वह दोपहर को, दरवाजे पहुंचकर रामजी का नाम लिया, स्नान-भोजन करके फिर चला गया काम पर।शाम को आया दरवाजे पर फिर नाम लिया राम का, प्रातःकाल चलते समय एक बार फिर उसने मधुर नाम-स्मरण किया।

 

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ भी सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘प्रियतम’ से ली गई हैं। इस भाग में नारदजी उस किसान की भक्ति का निरीक्षण करने के लिए उसके घर जाते हैं जिसे भगवान विष्णु ने अपना सबसे बड़ा भक्त बताया था। नारदजी उस किसान के दैनिक जीवन को देखकर यह जानने की कोशिश करते हैं कि वह कैसे भगवान की भक्ति करता है। उन्हें उम्मीद थी कि किसान दिन-रात पूजा-पाठ और भक्ति में लीन रहेगा, लेकिन किसान का व्यवहार उनसे थोड़ा अलग प्रतीत होता है।

सन्दर्भ:
यह पंक्तियाँ उस स्थिति का वर्णन करती हैं जहाँ नारदजी एक साधारण किसान की दिनचर्या का अवलोकन करते हैं। वह देखते हैं कि किसान दिन में केवल तीन बार भगवान राम का नाम स्मरण करता है—पहले दोपहर को हल जोतने के बाद, फिर शाम को काम से लौटने पर, और अंत में प्रातःकाल काम पर जाने से पहले। यह वर्णन वास्तविक भक्ति की सादगी को दर्शाता है। कवि यहाँ दिखाते हैं कि भक्ति सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होती, बल्कि सच्ची भक्ति अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ईश्वर को याद रखना है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में नारदजी को यह देखकर आश्चर्य होता है कि किसान दिन भर खेत में काम करता है और केवल तीन बार भगवान राम का नाम लेता है—एक बार दोपहर को काम से लौटते समय, फिर शाम को घर लौटने पर, और अंत में सुबह काम पर जाते समय। नारदजी को यह प्रतीत होता है कि यह किसान किसी प्रकार की विशेष पूजा या अनुष्ठान नहीं करता, फिर भी भगवान विष्णु ने उसे अपना प्रिय भक्त कहा है। 

यहाँ कवि यह संदेश दे रहे हैं कि भक्ति का माप केवल अनुष्ठानों से नहीं किया जा सकता, बल्कि अपने कर्म करते हुए ईश्वर का ध्यान और समर्पण सच्ची भक्ति है। किसान का सरल और निष्ठावान जीवन यह दर्शाता है कि ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा कर्मों में निहित होती है, न कि केवल बाहरी आडम्बरों में।

(3)”बस केवल तीन बार।” नारद चकरा गए – किन्तु भगवान को किसान ही क्यों याद आया ? गये विष्णुलोक, बोले भगवान से “देखा किसान को दिन-भर में तीन बार नाम उसने लिया है राम का!”

बोले विष्णु, “नारदजी, आवश्यक दूसरा एक काम आया है तुम्हें छोड़कर कोई और नहीं कर सकता साधारण विषय यह।

बाद को विवाद होगा। तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए।” “तेल-पूर्ण पात्र यह लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की ध्यान रहे सविशेष एक बूँद भी इससे तेल न गिरने पाए।”

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘प्रियतम’ से ली गई हैं। इस भाग में नारदजी, किसान की दिनचर्या और उसकी भक्ति को देखकर चकित हो जाते हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आता कि भगवान विष्णु ने एक ऐसे व्यक्ति को अपना प्रिय भक्त क्यों कहा, जो दिन में केवल तीन बार भगवान का नाम स्मरण करता है। नारदजी इस शंका का समाधान पाने के लिए विष्णुलोक जाते हैं और भगवान विष्णु से अपनी दुविधा व्यक्त करते हैं।

सन्दर्भ:
यह पंक्तियाँ भक्ति के गहन और गूढ़ अर्थ को उजागर करती हैं। नारदजी को लगता है कि केवल तीन बार भगवान का नाम लेना किसी को भगवान का प्रिय भक्त नहीं बना सकता, जबकि विष्णुजी के अनुसार सच्ची भक्ति की परिभाषा केवल बाहरी दिखावे से नहीं की जा सकती। विष्णुजी नारदजी को एक विशेष कार्य सौंपते हैं ताकि उन्हें यह समझाया जा सके कि किसी भी भक्त के लिए अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ईश्वर को याद रखना भी सच्ची भक्ति का रूप है।

व्याख्या:
नारदजी को किसान की भक्ति समझ में नहीं आती, क्योंकि वह केवल दिन में तीन बार भगवान राम का नाम लेता है। नारदजी के अनुसार, एक सच्चा भक्त तो दिन-रात भगवान का स्मरण करता होगा। इसलिए वे अपनी शंका का समाधान पाने भगवान विष्णु के पास जाते हैं। 

विष्णुजी उन्हें एक विशेष कार्य सौंपते हैं, जिसमें उन्हें तेल से भरा पात्र लेकर पूरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करनी होती है और ध्यान रखना होता है कि एक भी बूँद तेल न गिरे। यह कार्य बहुत ध्यान और सावधानी की माँग करता है, और इससे भगवान विष्णु नारदजी को यह सिखाना चाहते हैं कि जैसे नारदजी को इस काम में अत्यधिक ध्यान देना पड़ा, वैसे ही किसान भी अपने कठिन कार्यों के बीच भगवान का स्मरण करता है।

यह पंक्तियाँ यह संदेश देती हैं कि भक्ति और कर्म दोनों का संतुलन आवश्यक है। किसान अपने कठोर श्रम के साथ भगवान का स्मरण करता है, जो उसकी सच्ची भक्ति को दर्शाता है। भगवान की दृष्टि में केवल अनुष्ठानिक भक्ति महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण सच्ची भक्ति का प्रतीक है।

(4)लेकर चले नारद जी आज्ञा पर घृत लक्ष्य एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।

योगिराज जल्द ही विश्व पर्यटन करके लौटे बैकुंठ को तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं उल्लास मन में भरा था। यह सोचकर तेल का रहस्य एक अवगत होगा नया।

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ भी सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘प्रियतम’ से ली गई हैं। इस भाग में भगवान विष्णु ने नारदजी को तेल से भरा पात्र देकर पूरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने का कार्य सौंपा था, जिसमें उन्हें इस बात का ध्यान रखना था कि तेल की एक भी बूँद न गिरे। नारदजी विष्णुजी की आज्ञा का पालन करते हुए पूरे विश्व का भ्रमण करते हैं और इस कठिन कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर वापस बैकुंठ लौटते हैं। उनके मन में इस बात की प्रसन्नता होती है कि उन्होंने यह कार्य बिना किसी त्रुटि के पूरा कर लिया है।

सन्दर्भ:
यह पंक्तियाँ नारदजी की भक्ति और ध्यान की शक्ति का प्रतीक हैं। नारदजी को भगवान विष्णु ने इस कठिन कार्य के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की कि किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए ध्यान और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार नारदजी ने पूरे समय तेल का ध्यान रखा और एक भी बूँद गिरने नहीं दी, उसी प्रकार किसान अपने जीवन के कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी भगवान का स्मरण करता है। यह प्रसंग यह स्पष्ट करता है कि भक्ति का माप मात्रा से नहीं, बल्कि समर्पण और निष्ठा से होता है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में नारदजी विष्णुजी की आज्ञा का पालन करते हुए तेल से भरा पात्र लेकर पूरे भूमंडल की प्रदक्षिणा करते हैं। वे अत्यधिक सावधानी बरतते हैं ताकि तेल की एक भी बूँद न गिरे। अंततः वे सफल होते हैं और उन्हें इस बात का गर्व होता है कि उन्होंने यह कठिन कार्य बिना किसी गलती के पूरा कर लिया है। उनके मन में यह सोचकर उल्लास भी भर जाता है कि अब वे भगवान विष्णु के दिए गए कार्य के रहस्य को जान पाएंगे।

इस प्रसंग के माध्यम से कवि यह दिखाना चाहते हैं कि किसी भी कठिन कार्य को पूरा करने के लिए पूर्ण ध्यान और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। नारदजी को यह अनुभव कराने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें यह कार्य दिया था, ताकि वे समझ सकें कि किसान अपने कठिन और व्यस्त जीवन में भी भगवान का स्मरण कैसे करता है। 

जैसे नारदजी ने पूरी यात्रा के दौरान केवल तेल के पात्र पर ध्यान केंद्रित रखा, उसी तरह किसान अपने काम के बीच में भी ईश्वर का स्मरण करता है। यही सच्ची भक्ति है, जहाँ मन और आत्मा ईश्वर के प्रति समर्पित होते हैं, चाहे भौतिक जीवन कितना भी व्यस्त क्यों न हो।

(5) नारद को देखकर विष्णु भगवान ने बैठाया स्नेह से कहा, “यह उत्तर तुम्हारा यहीं आ गया बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार नाम इष्ट का लिया ?” “एक बार भी नहीं,”

शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से –

“काम तुम्हारा ही था ध्यान उसी में लगा रहा नाम फिर क्या लेता और?” विष्णु ने कहा, “नारद ! उस किसान का भी काम मेरा दिया हुआ है उत्तरदायित्व भी लादे है, एक साथ सबको निभाता और काम करता हुआ नाम भी वह लेता है,

इसी से है प्रियतम।” नारद लज्जित हुए कहा, “यह सत्य है।”

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘प्रियतम’ से ली गई हैं। इस भाग में नारदजी भगवान विष्णु के दिए कार्य को पूरा करके वापस आते हैं और भगवान विष्णु उनसे सवाल करते हैं कि तेल का पात्र लेकर जाते समय उन्होंने कितनी बार भगवान का नाम लिया। 

नारदजी यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने एक बार भी भगवान का नाम नहीं लिया क्योंकि उनका पूरा ध्यान तेल के पात्र को संभालने में लगा हुआ था। भगवान विष्णु उन्हें यह समझाते हैं कि जैसे नारदजी का ध्यान केवल तेल के पात्र पर केंद्रित था, वैसे ही किसान अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी भगवान का स्मरण करता है, और इसी कारण वह विष्णुजी का प्रिय भक्त है।

सन्दर्भ:
इस प्रसंग के माध्यम से कवि ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ या नाम जप में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए ईश्वर का स्मरण करने में होती है। नारदजी यह समझ नहीं पाए थे कि किसान क्यों भगवान का प्रिय भक्त है, लेकिन इस अनुभव के बाद वे यह जान पाते हैं कि किसान, अपनी जीवन की जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी, ईश्वर का नाम लेना नहीं भूलता। यही सच्ची भक्ति का रूप है।

व्याख्या:
नारदजी जब भगवान विष्णु के दिए कार्य से वापस लौटते हैं, तो विष्णुजी उनसे पूछते हैं कि उन्होंने यात्रा के दौरान कितनी बार भगवान का नाम लिया। नारदजी यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने एक भी बार नाम नहीं लिया, क्योंकि उनका पूरा ध्यान तेल के पात्र पर केंद्रित था। भगवान विष्णु यह समझाते हैं कि जैसे नारदजी का पूरा ध्यान कार्य पर लगा था, वैसे ही किसान भी अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को निभाते हुए भगवान का स्मरण करता है।

विष्णुजी कहते हैं कि किसान अपने जीवन में अनेक जिम्मेदारियाँ निभाते हुए भी ईश्वर का नाम लेता है, इसलिए वह उनका प्रिय भक्त है। नारदजी इस बात को समझते हैं और लज्जित होते हुए सत्य को स्वीकार करते हैं। यह व्याख्या यह बताती है कि सच्ची भक्ति का माप केवल पूजा की संख्या से नहीं, बल्कि जीवन के हर कार्य में ईश्वर का स्मरण करते रहने से होता है। किसान का जीवन एक उदाहरण है कि चाहे व्यक्ति कितनी भी कठिनाइयों और कार्यभार में क्यों न हो, ईश्वर का नाम स्मरण करना ही भक्ति की पराकाष्ठा है।

प्रियतम1. विष्णु ने नारद को किसे अपना प्रधान भक्त बताया ?

उत्तर :-सज्जन किसान को

2. ‘प्रियतम’ कविता के रचयिता का उपनाम है?

उत्तर :-निराला

3. सज्जन किसान ने दिनभर में कितनी बार ईश्वर को याद किया?

उत्तर :-तीन बार

4. नारद का दूसरा नाम है

उत्तर :-योगीराज

प्रियतम कविता का लघुत्तरीय प्रश्न :​

उत्तर :-नारदजी भगवान विष्णु के पास यह पूछने गए थे कि  पृथ्वी पर उनका सबसे प्रिय भक्त कौन है। 

उत्तर :- नारद  जी किसान की परीक्षा लेने के लिए उसके पास गए।

उत्तर :-नारदजी जब उस किसान भक्त के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वह किसान दिन भर अपने खेतों में मेहनत कर रहा था। दोपहर के समय जब वह हल जोत कर घर आया, तो दरवाजे पर पहुंचते ही उसने भगवान राम का नाम लिया। फिर उसने स्नान किया, भोजन किया, और इसके बाद दोबारा अपने काम पर चला गया। शाम को जब वह काम से लौटा, तो फिर से दरवाजे पर भगवान राम का नाम लिया। अगले दिन सुबह, काम पर जाने से पहले उसने एक बार और भगवान का नाम लिया। नारदजी ने देखा कि किसान दिन में केवल तीन बार भगवान का स्मरण कर रहा था।

उत्तर :-नारदजी जब किसान की भक्ति को देखकर भगवान विष्णु के पास वापस पहुंचे, तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा, “भगवान, मैंने उस किसान को देखा है। उसने पूरे दिन में केवल तीन बार आपका नाम लिया – एक बार सुबह, एक बार दोपहर में, और एक बार शाम को। ऐसे व्यक्ति को आप अपना प्रिय भक्त कैसे मान सकते हैं?” नारदजी यह समझ नहीं पा रहे थे कि जो व्यक्ति दिन भर भगवान का नाम बार-बार नहीं लेता, वह भगवान का सबसे प्रिय भक्त कैसे हो सकता है, इसलिए उन्होंने अपनी शंका भगवान विष्णु के सामने प्रकट की।

उत्तर :-नारदजी ने लज्जित होकर भगवान विष्णु से कहा, “यह सत्य है।” जब भगवान विष्णु ने उन्हें यह समझाया कि किसान अपने कठिन और व्यस्त जीवन के बावजूद भगवान का स्मरण करता है और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी ईश्वर को नहीं भूलता, तब नारदजी ने अपनी गलती स्वीकार की।

उन्होंने महसूस किया कि सच्ची भक्ति केवल बार-बार भगवान का नाम जपने में नहीं, बल्कि अपने कर्मों को ईमानदारी से निभाते हुए ईश्वर को याद करने में है। इसी कारण नारदजी ने लज्जित होकर यह सत्य स्वीकार किया।

प्रियतम कविता का बोधमूलक प्रश्न :​

उत्तर :-नारदजी परेशान इसलिए थे क्योंकि उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा कि मृत्युलोक में उनका सबसे प्रिय भक्त कौन है। भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि एक साधारण किसान उनका प्रिय भक्त है।

यह सुनकर नारदजी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि वे स्वयं को विष्णु का परम भक्त मानते थे और उन्हें यह समझ नहीं आया कि एक साधारण किसान, जो दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता है और केवल तीन बार भगवान का नाम लेता है, कैसे भगवान का सबसे प्रिय भक्त हो सकता है। नारदजी यह सोचकर परेशान हो गए कि जो व्यक्ति भगवान का नाम कम लेता है, वह भगवान का प्रिय कैसे हो सकता है।

नारदजी की परेशानी का समाधान:
भगवान विष्णु ने नारदजी की शंका को दूर करने के लिए उन्हें एक परीक्षा दी। उन्होंने नारदजी को एक तेल से भरा पात्र दिया और कहा कि वे इस पात्र को लेकर पूरे पृथ्वी की प्रदक्षिणा करें, लेकिन ध्यान रखें कि तेल की एक भी बूँद न गिरे।

नारदजी ने यह कठिन कार्य बहुत ध्यान और सावधानी से पूरा किया। जब वे वापस लौटे, तो भगवान विष्णु ने उनसे पूछा कि प्रदक्षिणा के दौरान उन्होंने कितनी बार भगवान का नाम लिया। नारदजी ने उत्तर दिया कि एक बार भी नहीं, क्योंकि उनका सारा ध्यान तेल के पात्र पर था ताकि एक भी बूँद न गिरे।

तब भगवान विष्णु ने समझाया कि जैसे नारदजी का ध्यान पूरे समय तेल के पात्र पर केंद्रित था, वैसे ही किसान अपने जीवन के कठिन कार्यों और जिम्मेदारियों में व्यस्त रहते हुए भी भगवान का स्मरण करता है। वह अपने सारे काम पूरे ध्यान से करता है, फिर भी भगवान का नाम लेना नहीं भूलता। यही कारण है कि वह किसान भगवान का प्रिय भक्त है।

निष्कर्ष:
इस प्रकार नारदजी की परेशानी का समाधान हो गया। उन्होंने समझ लिया कि सच्ची भक्ति केवल नाम जपने या पूजा करने में नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान को स्मरण करने में है। नारदजी ने अंततः स्वीकार किया कि किसान की भक्ति सच्ची है, क्योंकि वह अपने कर्मों और भक्ति के बीच संतुलन बनाए रखता है।

 उत्तर :-निराला   जी ने अपनी कविता ‘प्रियतम’ में कर्म और भक्ति के सामंजस्य को बहुत ही सुंदर और गहराई से प्रस्तुत किया है। उन्होंने यह दर्शाया है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होती, बल्कि व्यक्ति के दैनिक कर्मों और जिम्मेदारियों के साथ जुड़ी होती है।

कर्म और भक्ति का सामंजस्य:
किसान का उदाहरण: कविता में एक किसान को भगवान विष्णु का प्रिय भक्त बताया गया है। यह किसान दिन-रात मेहनत करता है, अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है, और उसी समय वह भगवान राम का स्मरण भी करता है। वह दिन में केवल तीन बार भगवान का नाम लेता है, लेकिन विष्णुजी के अनुसार उसकी भक्ति सच्ची है, क्योंकि वह अपने कर्मों को ईश्वर की भक्ति के रूप में करता है।

नारदजी की परीक्षा: नारदजी, जो भगवान के प्रिय भक्त और हमेशा भक्ति में लीन रहने वाले माने जाते हैं, किसान की भक्ति को समझ नहीं पाते। उन्हें लगता है कि सच्ची भक्ति का माप केवल बार-बार भगवान का नाम लेने से होता है। भगवान विष्णु नारदजी को एक तेल से भरे पात्र के साथ भूमंडल की प्रदक्षिणा करने का कार्य सौंपते हैं और नारदजी पूरे समय तेल पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि एक बूँद भी न गिरे।

संदेश: भगवान विष्णु नारदजी को यह समझाते हैं कि जिस प्रकार नारदजी का ध्यान केवल तेल के पात्र पर केंद्रित था और उन्होंने ईश्वर का नाम स्मरण नहीं किया, उसी प्रकार किसान अपने जीवन के कार्यों में व्यस्त होते हुए भी ईश्वर को नहीं भूलता। किसान अपने कर्तव्यों और ईश्वर के प्रति प्रेम के बीच सामंजस्य स्थापित करता है, और इसी कारण उसकी भक्ति सच्ची मानी जाती है।

निष्कर्ष:
निराला जी ने इस कविता में यह बताया है कि कर्म और भक्ति एक-दूसरे से अलग नहीं हैं, बल्कि एक साथ चलते हैं। ईश्वर का सच्चा भक्त वह होता है जो अपने कार्यों के साथ-साथ ईश्वर को भी याद रखता है। निराला जी का यह दृष्टिकोण बताता है कि भक्ति का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठानों में लीन रहना नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में ईश्वर को समर्पित रहना है।

notice : "प्रियतम " सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला द्वारा लिखी class -8 की कविता है। इस article लिखने के लिए हमने west bengal sylabus के sahit mela पुस्तक का help लिए। हमारा उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना है। Google से गुजारिश है हमारे post को रैंक करे और छात्रों को शिक्षित करने में हमारी मदद करे।

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