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यदि फूल नहीं बो सकते तो रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की कविता है

कवि इस कविता के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर हम जीवन में सुख, सौंदर्य और प्रेम का संचार नहीं कर सकते, तो कम से कम हमें नकारात्मकता और दुःख को फैलाने से बचना चाहिए।

संदर्भ:
यह कविता उस समय की सामाजिक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है, जब मानवता विभिन्न संकटों और कठिनाइयों का सामना कर रही थी। कविता का संदर्भ यह है कि मानव का मन संवेदनशील होता है और उसमें ममता, सहानुभूति, और प्रेम की आवश्यकता होती है। कवि इस कविता के माध्यम से उन परिस्थितियों का चित्रण कर रहे हैं, जहाँ लोगों को आपस में सहारा देना चाहिए, बजाय इसके कि वे एक-दूसरे को और भी दुखी करें।

व्याख्या:
कविता की पहली पंक्ति “यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ” में कवि यह कहते हैं कि यदि हम खुशियों, प्रेम और सौंदर्य को नहीं फैला सकते, तो हमें दूसरों के जीवन में दुःख और कठिनाइयाँ नहीं बढ़ानी चाहिए। यहाँ ‘फूल’ का अर्थ सकारात्मकता और ‘काँटे’ का अर्थ नकारात्मकता है।

कवि आगे कहते हैं कि “है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन,” यहाँ मानव की कमजोरियों और उसकी संवेदनशीलता की ओर इशारा किया गया है। मानव का मन अक्सर कष्टों और कठिनाइयों का सामना करता है, और उसे ममता की छाया में आश्रय की आवश्यकता होती है।

“ज्वालाएँ जब धुल जाती हैं, खुल-खुल जाते है मुँदे नयन” पंक्ति में कवि यह दर्शाते हैं कि जब कठिनाइयाँ समाप्त होती हैं, तब मानव का मन भी शुद्ध और शांत हो जाता है। “होकर निर्मलता में प्रशांत बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन” का अर्थ है कि जब मन निर्मल होता है, तब जीवन में शांति और सुख का संचार होता है।

कवि यह भी बताते हैं कि “संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ” का मतलब है कि जब हम संकट में होते हैं, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। हमें भय को पार कर मुस्कुराने की कोशिश करनी चाहिए।

कुल मिलाकर, इस कविता में कवि ने यह संदेश दिया है कि जीवन में सकारात्मकता को फैलाना चाहिए और नकारात्मकता से बचना चाहिए। यदि हम अपने चारों ओर खुशियों का संचार नहीं कर सकते, तो हमें दूसरों के जीवन में दुःख और कठिनाइयाँ बढ़ाने से बचना चाहिए। यह कविता प्रेरणा देती है कि हमें हमेशा आशावादी रहना चाहिए और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

(2)हर सपने पर विश्वास करो, मत याद करो, मत सोचो इस दुनिया की है रीति यही लो लगा चाँदनी का चंदन, ज्वाला में कैसे बीता जीवन, सहता है तन, बहता है मन, सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन, इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ। यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।

प्रसंग:

इस पंक्ति का प्रसंग भी रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ की कविता “यदि फूल नहीं बो सकते तो” से जुड़ा हुआ है। इसमें कवि जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों और सकारात्मकता की आवश्यकता पर जोर देते हैं। यह पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि सपनों पर विश्वास करना आवश्यक है और हमें अपने जीवन की वास्तविकताओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

संदर्भ:

यह कविता उस समय की सामाजिक स्थिति और मानसिकता को दर्शाती है, जब लोग असमंजस और निराशा का सामना कर रहे थे। कवि का उद्देश्य यह है कि हमें अपने सपनों पर विश्वास करना चाहिए और जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। वह यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें नकारात्मकता से बचकर सकारात्मकता की ओर अग्रसर होना चाहिए।

व्याख्या:

“हर सपने पर विश्वास करो, मत याद करो, मत सोचो इस दुनिया की है रीति”: यह पंक्ति बताती है कि हमें अपने सपनों पर भरोसा रखना चाहिए और दुनिया की नकारात्मकताओं को याद करके निराश नहीं होना चाहिए। जीवन की कठिनाइयों को देखकर हमें अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहिए।

“यह लो लगा चाँदनी का चंदन”: यहाँ ‘चाँदनी’ का चंदन एक प्रतीक है जो सुख, प्रेम, और शांति का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि हमें अपने जीवन में सकारात्मकता और सौंदर्य को अपनाना चाहिए।

“ज्वाला में कैसे बीता जीवन”: यह पंक्ति जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों का जिक्र करती है। ‘ज्वाला’ का अर्थ है जीवन में आने वाली चुनौतियाँ, जिन्हें हमें सहना पड़ता है।

“सहता है तन, बहता है मन”: इस पंक्ति में कवि यह दर्शाते हैं कि हमारे शरीर को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जबकि हमारा मन उन कठिनाइयों के बावजूद आगे बढ़ने की कोशिश करता है।

“सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन”: यहाँ कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों को सहन करते हुए सुख का अनुभव करता है, वही सच में जागरूक और समझदार होता है।

“इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ”: इसका अर्थ है कि यदि आप जीवन की कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकते, तो निराशा में नहीं रहना चाहिए। आपको संघर्ष और कठिनाइयों के साथ जीना सीखना चाहिए।

“यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ”: यह पंक्ति जीवन में नकारात्मकता फैलाने से बचने की सलाह देती है। यदि हम खुशियों और सकारात्मकता का संचार नहीं कर सकते, तो कम से कम दूसरों के जीवन में दुःख और कठिनाइयाँ न बढ़ाएँ।

(3)पग-पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता, अनसुना अचीन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता, संशय के सूक्ष्म कुहासों में विश्वास नहीं क्षण-भर रमता, बादल के घेरों में भी तो जय घोष न मारुत का थमता, यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुरदे मत ढोओ, यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।

प्रसंग:

इन पंक्तियों का प्रसंग रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ की कविता “यदि फूल नहीं बो सकते तो” से जुड़ा हुआ है। इन पंक्तियों में कवि जीवन में सकारात्मकता, संकल्प और विश्वास की आवश्यकता पर जोर देते हैं। यहाँ कवि यह बताना चाहते हैं कि केवल शोर मचाने से, या बातों में उलझकर, हम अपने संकल्प को मजबूत नहीं कर सकते।

संदर्भ:

यह कविता उस समय की मानसिकता को दर्शाती है जब लोग जीवन की कठिनाइयों, संदेहों और अविश्वास के बीच संघर्ष कर रहे थे। कवि का उद्देश्य यह है कि हमें अपने संकल्पों को दृढ़ करने के लिए सही दिशा में कार्य करना चाहिए और नकारात्मकता से बचना चाहिए।

व्याख्या:

“पग-पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता”: इस पंक्ति का अर्थ है कि केवल बातों और शोर से मन में कोई ठोस संकल्प नहीं बनता। हमें अपने विचारों और कर्मों को स्पष्ट और ठोस दिशा में ले जाना चाहिए।

“अनसुना अचीन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता”: इसका मतलब है कि संकटों का सामना करने के लिए केवल अनसुना करने से काम नहीं चलता। हमें संकटों का सामना करना और उनका समाधान निकालना सीखना होगा।

“संशय के सूक्ष्म कुहासों में विश्वास नहीं क्षण-भर रमता”: यहाँ कवि यह बता रहे हैं कि संशय और अविश्वास में विश्वास टिक नहीं सकता। जब हम संदेह में रहते हैं, तो हमारी सकारात्मकता और विश्वास क्षीण हो जाता है।

“बादल के घेरों में भी तो जय घोष न मारुत का थमता”: यह पंक्ति बताती है कि जब मुश्किलें होती हैं, तब भी हमें साहस नहीं छोड़ना चाहिए। हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए, चाहे कितनी भी कठिनाई आए।

“यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुरदे मत ढोओ”: इसका अर्थ है कि यदि आप अपने विश्वासों पर आगे नहीं बढ़ सकते, तो निराशा और कठिनाइयों का बोझ अपने ऊपर न रखें। हमें अपने विश्वासों को मजबूत बनाकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

“यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ”: इस पंक्ति में कवि यह कहते हैं कि यदि हम खुशियों और सकारात्मकता का संचार नहीं कर सकते, तो हमें दूसरों के जीवन में दुःख और कठिनाइयाँ नहीं बढ़ानी चाहिए।

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का वस्तुनिष्ठ प्रश्न:-

यदि फूल नहीं बो सकते तो1.’यदि फूल नहीं बो सकते तो’ किस विधा की रचना है?

उत्तर :-कविता

2. कवि के अनुसार किसका मन कमजोर है?

उत्तर :-मानव 

3.”कटुता का शमन” कहाँ होता है?

उत्तर :-माता की शीतल छाया में

4. पग-पग पर शोर मचाने से क्या नहीं जमता है?

उत्तर :-संकल्प

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का लघुत्तरीय प्रश्न :

उत्तर :-ममता की शीतल छाया में कटुता का शमन होता है।

उत्तर :-मन में संकल्प तब नहीं जमता है जब हम हर कदम पर केवल शोर मचाते हैं और बिना किसी ठोस कार्य या विचार के सिर्फ बातों में उलझे रहते हैं।

उत्तर :-“मरुता” शब्द का प्रयोग कविता में साहसी और दृढ़ व्यक्ति के लिए किया गया है, जो कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहता है और निरंतर प्रयास करता है।

उत्तर :-कवि ने चेतन उसे कहा है जो जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों को सहते हुए भी जागरूक रहता है, अर्थात जो कठिनाइयों के बावजूद सकारात्मकता और सुख का अनुभव कर पाता है।

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का बोधमूलक प्रश्न :

उत्तर :-कवि अपने सपनों पर विश्वास करने के लिए इसलिए कहते हैं क्योंकि जीवन में कठिनाइयाँ और संघर्ष हमेशा आते रहते हैं, लेकिन यदि हम अपने सपनों पर विश्वास नहीं करेंगे, तो उन कठिनाइयों का सामना करना और आगे बढ़ना मुश्किल हो जाएगा। सपनों पर विश्वास करने से हमें प्रेरणा और हौसला मिलता है, जो हमें जीवन की चुनौतियों से लड़ने और सफल होने में मदद करता है।

उत्तर :-कवि ने लोगों को निम्नलिखित सलाह दी है:

यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ – कवि कहते हैं कि यदि हम जीवन में सुख, प्रेम और सकारात्मकता नहीं फैला सकते, तो हमें कम से कम नकारात्मकता और दुःख भी नहीं फैलाना चाहिए।

संकट में मुस्कराने की कोशिश करो, भय से कातर होकर मत रोओ – कठिनाइयों और संकट के समय हमें घबराकर रोना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य और साहस के साथ उसका सामना करना चाहिए।

अपने सपनों पर विश्वास करो – कवि यह सलाह देते हैं कि हमें अपने सपनों पर भरोसा रखना चाहिए और जीवन की चुनौतियों के बावजूद उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।

संकटों को अनदेखा मत करो – कवि कहते हैं कि संकटों का सामना करने के लिए उन्हें अनदेखा करना या उनसे भागना सही नहीं है, हमें उनका डटकर सामना करना चाहिए।

कुल मिलाकर, कवि ने सकारात्मकता फैलाने, कठिनाइयों का साहस से सामना करने, और अपने सपनों पर विश्वास रखने की प्रेरणा दी है।

 

उत्तर :-प्रस्तुत कविता “यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ” का मूल भाव यह है कि यदि हम जीवन में सुख, प्रेम, और सकारात्मकता नहीं फैला सकते, तो हमें नकारात्मकता और दुःख भी नहीं फैलाना चाहिए।

कवि इस कविता के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा होता है, लेकिन हमें अपने मन को कमजोर नहीं होने देना चाहिए। ममता, सहानुभूति, और प्रेम से मनुष्य का मन शांत होता है और जीवन में संतुलन बना रहता है।

कवि यह भी कहते हैं कि संकट और कठिनाइयाँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हमें उनका सामना साहस और धैर्य के साथ करना चाहिए। जीवन में नकारात्मकता फैलाने से बचते हुए, हमें आशा और विश्वास बनाए रखना चाहिए। यदि हम दूसरों के जीवन में खुशियाँ नहीं ला सकते, तो कम से कम उन्हें और दुखी करने से बचना चाहिए।

कुल मिलाकर, कविता का मूल भाव सकारात्मकता, संवेदनशीलता, और जीवन में संघर्षों का साहस से सामना करने पर आधारित है।

उत्तर :-‘अनसुना अचीन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता’ का आशय यह है कि यदि हम संकटों या समस्याओं को नजरअंदाज करते हैं या उन्हें समझने का प्रयास नहीं करते, तो वे समाप्त नहीं होतीं। संकटों का समाधान तभी संभव है जब हम उनका सामना करें और उन्हें समझने का प्रयास करें। केवल अनदेखा करने या उनसे बचने की कोशिश करने से उनकी तीव्रता या प्रभाव कम नहीं होता।

कवि यह बताना चाहते हैं कि समस्याओं से भागने या उन्हें अनसुना करने की बजाय, उनका सामना करना ही एकमात्र रास्ता है जिससे हम उन्हें हल कर सकते हैं।

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