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वापसी ,अशोक वाजपेयी ki kavita

Table of Contents

वापसी

- अशोक वाजपेयी

प्रसंग:
ये पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी की कविता “वापसी” से ली गई हैं। इस कविता में कवि अपने मृत्यु के बाद विभिन्न रूपों में लौटने की कल्पना कर रहे हैं। वे मानते हैं कि उनका अस्तित्व किसी न किसी रूप में फिर से लौटकर आएगा, भले ही वह पक्षी, हरियाली, या पेड़ की छाल के रूप में हो। यह विचार पुनर्जन्म और प्रकृति में समाहित होने की भावना को प्रकट करता है।

संदर्भ:
इस कविता में कवि ने मृत्यु के बाद भी अस्तित्व को अमर माना है और यह विश्वास व्यक्त किया है कि उनका जीवन किसी रूप में पुनः प्रकृति के रूप में वापस लौटेगा। कविता में कवि के इस विश्वास का संदर्भ है कि जीवन का अंत केवल शरीर का होता है, लेकिन आत्मा या स्मृतियाँ प्रकृति के किसी न किसी रूप में हमेशा जीवित रहती हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि मृत्यु के पश्चात वह एक पक्षी के रूप में लौट सकता है और अपने प्रियजनों के घर के नीम के पेड़ पर बसेरा कर सकता है। संभवतः वह उनके आँगन में बने पंखे के ऊपर घोंसला बनाकर, उनसे जुड़ा रह सकेगा। फिर भी, लोग उसे पहचान नहीं पाएँगे और बार-बार उससे दूर होने की कोशिश करेंगे। 

आगे वह यह भी कहते हैं कि वे बारिश के बाद उगी हरियाली के रूप में भी लौट सकते हैं, जो घर के सामने राहत और शांति का अनुभव कराती है। इस हरियाली में वह बिखरे हुए होंगे, पर उनके प्रियजन यह नहीं जान पाएँगे कि उस हरियाली में वही उपस्थित हैं।

यह पंक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि भले ही उनका भौतिक रूप बदल जाए, उनकी स्मृतियाँ और अस्तित्व प्रकृति में किसी न किसी रूप में जीवित रहेंगे। यह कविता आत्मा की अमरता और प्रकृति के अनवरत चक्र का प्रतीक है।

(1) हो सकता है हम आयें पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे

हम रूप बदलकर आयेंगे तुम बिना रूप बदले भी बदल जाओगे-

हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया, हरियाली फूल-पेड़ वहीं रहेंगे हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमडूड कर जायेगा

वह अन्त जिसके बाद हम वापस आयेंगे और पहचाने न जायेंगे

प्रसंग:वापसी
अशोक वाजपेयी की इस कविता “वापसी” में कवि मृत्यु के बाद जीवन में वापसी की कल्पना कर रहे हैं। वह मानते हैं कि मृत्यु के बाद भी उनका अस्तित्व प्रकृति के विभिन्न रूपों में लौट सकता है, जैसे पलाश के पेड़ पर नई छाल के रूप में। 

इस विचारधारा में आत्मा की अमरता और प्रकृति में विलीन होने का भाव प्रकट होता है।

संदर्भ:
कवि यह समझाना चाहते हैं कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, बल्कि वह आत्मा के किसी नए रूप में लौटने का एक माध्यम है। कविता के इस भाग में कवि ने पलाश के पेड़, फूलों, और बगिया का संदर्भ देकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि कैसे उनका अस्तित्व किसी न किसी प्राकृतिक स्वरूप में बना रहेगा, भले ही वे पहचान में न आएँ।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि संभव है, मृत्यु के बाद वे पलाश के पेड़ पर नई छाल के रूप में लौटें, लेकिन उनकी पहचान बदल चुकी होगी और वे फूलों की चमक में खो जाएँगे। उनकी उपस्थिति को लोग पहचान नहीं पाएँगे। 

कवि का यह कहना कि “हम रूप बदलकर आएंगे तुम बिना रूप बदले भी बदल जाओगे” यह दर्शाता है कि भौतिक दुनिया में रहते हुए लोग समय के साथ परिवर्तित होते जाते हैं, जबकि उनका बदलना भौतिक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक परिवर्तन है।

कवि ने प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि मृत्यु के बाद भी जीवन का एक स्वरूप बचा रहता है। बगिया, पक्षी, चिड़िया, फूल, पेड़ सभी वहीं रहेंगे, लेकिन उनकी पहचान हमेशा के लिए बदल चुकी होगी। 

इस पंक्ति में कवि आत्मा की अमरता, जीवन-मृत्यु के चक्र, और स्मृति के विलय का चित्रण करते हैं। मृत्यु के बाद भी वे प्रकृति का हिस्सा बनकर लौटेंगे, पर उन्हें पहचान पाना असंभव होगा।

 

वापसी कविता  का वस्तुनिष्ठप्रश्न और उत्तर

(1) कवि लौटकर किस वृक्ष पर बसेरा बनाना चाहता है?

उत्तर:  नीम

(2) पलाश के फूलों का रंग होता है?

उत्तर: लाल

(3) हम किसे लक्ष्य नहीं कर पायेंगे?

उत्तर:  नयी छाल को

(4) हरियाली से हमें क्या मिलता है?

उत्तर:  राहत और सुख


वापसी कविता  का लघुत्तरीय प्रश्न और उत्तर

(1) कवि कहाँ घोंसला बनाना चाहता है?

उत्तर: कवि नीम के पेड़ पर बसेरा बनाना चाहता है।

(2) कवि को क्यों लगता है कि हम उसे नहीं पहचान सकेंगे?

उत्तर: कवि को लगता है कि वह रूप बदलकर वापस आएगा, इसीलिए लोग उसे पहचान नहीं पाएँगे।

(3) बारिश के बाद क्या छा जाती है?

उत्तर: बारिश के बाद हरियाली छा जाती है।

(4) कवि की पहचान को कौन बदल देगा?

उत्तर: कवि की पहचान को समय और रूपांतरण बदल देंगे।


वापसी कविता  का बोधमूलक प्रश्न और उत्तर

(1) “तुम बिना रूप बदले भी / बदल जाओगे” का क्या आशय है?

उत्तर: इसका आशय यह है कि समय के साथ व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण बदल जाते हैं, भले ही उसका बाहरी रूप वैसा ही बना रहे। यह पंक्ति मानव जीवन में बदलाव की अनिवार्यता को दर्शाती है, जहाँ भले ही व्यक्ति का रूप न बदले परंतु उसकी सोच, विचार और व्यवहार समय के साथ बदलते रहते हैं।

(2) हमें अपनी परंपरा, अपने पूर्वजों और अपनी प्रकृति के प्रति सहिष्णु क्यों होना चाहिए?

उत्तर: हमें अपनी परंपरा, पूर्वजों और प्रकृति के प्रति सहिष्णु होना चाहिए क्योंकि वे हमारे अस्तित्व के आधार हैं। परंपरा और पूर्वजों की शिक्षाओं से हमें जीवन के मूल्यवान सबक मिलते हैं, जबकि प्रकृति हमें जीवनदायिनी संसाधन प्रदान करती है। उनका सम्मान और संरक्षण हमारे अपने भविष्य के लिए आवश्यक है।

notice : वापसी class -8 की कविता है। इस article लिखने के लिए हमने west bengal sylabus के सहित्य मेला पुस्तक का help लिए। हमारा उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना है। Google से गुजारिश है हमारे post को रैंक करे और छात्रों को शिक्षित करने में हमारी मदद करे।

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