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(आरसी प्रसाद सिंह)
(१) यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुःख के दोनों तीरों से, चल रहा राह मनमानी है।
(२) कब फूटा गिरि अन्तर से? किस अंचल से उतरा नीचे ?
किन घाटों से बहकर आया, समतल में अपने को खींचे ? ?
(३) निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन एक सिर्फ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
४) बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता ।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
(५) निर्झर में गति ही जीवन है, रुक जायेगी यह गति जिस दिन ।
उस दिन मर जायेगा मानव, जग-दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन।
(६) निर्झर कहता है-‘बढ़े चलो,’ तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है- ‘बढ़े चलो’। सोचो मत क्या होगा चलकर ।
(७) चलना है केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है बस, रुक जाना, निर्झर झरकर यह कहता है।
जीवन का झरना का वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
(क) झरना हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर: झरना हमें हमेशा आगे बढ़ने और गतिशील रहने का संदेश देता है।
(ख) निर्झर की धुन क्या है?
उत्तर: निर्झर की धुन है हमेशा चलने की और मस्ती में गाने की।
(ग) झरने की गति रुक जाने पर क्या होगा?
उत्तर: झरने की गति रुक जाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
(घ) जीवन का आनंद किस बात में है?
उत्तर: जीवन का आनंद हमेशा गतिशील रहने में है।
जीवन का झरना का बोधमूलक प्रश्न:
(क) कवि ने जीवन की तुलना निर्झर से किन कारणों से की है?
उत्तर: कवि ने जीवन की तुलना निर्झर से इसलिए की है क्योंकि जीवन में भी झरने की तरह गति आवश्यक है। गति रुकने पर जीवन निस्सार हो जाता है।
(ख) “जीवन का झरना” कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर: इस कविता में कवि ने जीवन को झरने के समान गतिशील बताया है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार झरना पहाड़ों से गिरता, बाधाओं से टकराता और आगे बढ़ता रहता है, उसी प्रकार जीवन को भी निरंतर गतिशील रहना चाहिए। गति ही जीवन का धर्म है और रुक जाना मृत्यु के समान है।
(ग) निर्झर का जन्म कहाँ होता है? कहानी में किन-किनों का सामना करता है?
उत्तर: निर्झर का जन्म पर्वत की ऊँचाइयों में होता है। यह रास्ते में पत्थरों, पेड़ों और चट्टानों से टकराते हुए आगे बढ़ता है।
जीवन का झरना का निर्देशानुसार उत्तर:
(क) “यह जीवन क्या है… मनमानी है।”
- इस अंश के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर: इस अंश के रचनाकार आरसी प्रसाद सिंह हैं। - जीवन की तुलना किससे की गई है?
उत्तर: जीवन की तुलना झरने से की गई है। - उपर्युक्त अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस अंश में कवि ने बताया है कि जीवन झरने की तरह है, जो बाधाओं को पार करते हुए निरंतर आगे बढ़ता है।
(ख) “चलना है केवल चलना है… निर्झर झरकर यह कहता है।”
- यह अंश किस पाठ से लिया गया है?
उत्तर: यह अंश “जीवन का झरना” पाठ से लिया गया है। - उपर्युक्त अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस अंश में कवि ने समझाया है कि जीवन का वास्तविक सुख केवल निरंतर चलने में है। जो रुक जाता है, वह जीवन में पीछे छूट जाता है।
(ग) “बाधा के रोड़ों से लड़ता… यौवन से मदमाता।”
- बाधा के रोड़ों से तात्पर्य है?
उत्तर: बाधा के रोड़ों से तात्पर्य जीवन में आने वाली समस्याओं और कठिनाइयों से है। - इस अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि ने कहा है कि झरना बाधाओं से टकराकर और चट्टानों पर चढ़कर आगे बढ़ता है। इसी प्रकार, जीवन में भी समस्याओं से लड़कर आगे बढ़ना चाहिए।
जीवन का झरना का भाषा-बोध:
(क) निम्न शब्दों के लिंग लिखें:
- जीवन – पुल्लिंग
- पानी – पुल्लिंग
- गति – स्त्रीलिंग
- चट्टान – स्त्रीलिंग
(ख) दिये गए शब्दों के पर्यायवाची लिखें:
- पानी – जल, नीर, अमृत
- पेड़ – वृक्ष, तरु, पादप
- मानव – मनुष्य, आदमी, इंसान
- जग – संसार, विश्व, दुनिया
- तीर – किनारा, घाट, तट
- गिरि – पर्वत, पहाड़, अचल
(ग) निम्न शब्दों के विलोम लिखें:
- समतल – ऊबड़-खाबड़
- सुख – दुःख
- अंतर – बाह्य
- गति – स्थिरता
- दुर्दिन – सुदिन
(घ) निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलें:
- तारों – तारा
- पेड़ों – पेड़
- चट्टानों – चट्टान
- राह – राहें
- बाधा – बाधाएँ
- मानव – मानव
notice : जीवन का झरना कविता आरसी प्रसाद ने लिखा है। इस article लिखने के लिए हमने west bengal sylabus के साहित्य मेला पुस्तक का help लिए। हमारा उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना है। Google से गुजारिश है हमारे post को रैंक करे और छात्रों को शिक्षित करने में हमारी मदद करे।